भूमंडलीकृत आषाढ़ का एक दिन
bhumanDlikrit ashaDh ka ek din
एक पपीहा वन-वन गाए
मन की जलन बुझाएँ कैसे?
कच्चा कुआँ कबीरा का है
प्यासे जन की जाति न पूछो।
चातक ने कितने युग देखे
इस बरखा की बात न पूछो।
तन बैरी या घन बैरी हैं
हम यह बात बताएँ कैसे?
कपटी दूत, प्रिया भी छलना
नहीं रही उज्जयिनी वैसी।
फिर हम बात कहाँ से लाएँ
कालिदास की कविता जैसी।
वनवासी भोले यक्षों को
शहरी गणित पढ़ाएँ कैसे?
ब्रज डूबे, वृंदावन सूखे
कंस नए चरवाह हो गए
टिहरी से केदारनाथ तक
शिव के नगर तबाह हो गए।
नवधनाढ्य ग्लोबल इंद्रों से
धरती-गगन बचाएँ कैसे?
- पुस्तक : इतिहास में अभागे (पृष्ठ 73)
- रचनाकार : दिनेश कुशवाह
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
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