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गुनाह का दूसरा गीत

gunah ka dusra geet

धर्मवीर भारती

धर्मवीर भारती

गुनाह का दूसरा गीत

धर्मवीर भारती

और अधिकधर्मवीर भारती

    अगर मैंने किसी के होंठ के पाटल कभी चूमे

    अगर मैंने किसी के नैन के बादल कभी चूमे

    महज़ इससे किसी का प्यार मुझ पर पाप कैसे हो!

    महज़ इस से किसी का स्वर्ग मुझ पर शाप कैसे हो!

    तुम्हारा मन अगर सींचूँ

    गुलाबी तन अगर सींचूँ

    तरल मलयज झकोरों से,

    तुम्हारा चित्र खींचूँ प्यास के रंगीन डोरों से,

    कली-सा तन, किरन-सा मन

    शिथिल सतरंगिया आँचल

    उसी में खिल पड़े यदि भूल से कुछ होंठ के पाटल

    किसी के होंठ पर झुक जाएँ कच्चे नैन के बादल

    महज़ इससे किसी का प्यार मुझ पर पाप कैसे हो?

    महज़ इससे किसी का स्वर्ग मुझ पर शाप कैसे हो?

    किसी की गोद में सिर धर

    घटा घनघोर बिखरा कर

    अगर विश्वास सो जाए,

    धड़कते वक्ष पर मेरा अगर व्यक्तित्व खो जाए,

    हो यह वासना

    तो ज़िंदगी की माप कैसे हो?

    किसी के रूप का सम्मान मुझको पाप कैसे हो?

    नसों का रेशमी तूफ़ान मुझको पाप कैसे हो?

    अगर मैंने किसी के होंठ के पाटल कभी चूमे!

    अगर मैंने किसी के नैन के बादल कभी चूमे!

    किसी की साँस में चुन दें

    किसी के होंठ पर बुन दें

    अगर अंगूर की परतें,

    प्रणय में निभ नहीं पातीं कभी इस तौर की शर्तें

    यहाँ तो हर क़दम पर

    स्वर्ग की पगडंडियाँ घूमीं

    अगर मैंने किसी की मदभरी अँगड़ाइयाँ चूमीं

    अगर मैं ने किसी की साँस की पुरवाइयाँ चूमीं

    महज़ इससे किसी का प्यार मुझ पर पाप कैसे हो!

    महज़ इससे किसी का स्वर्ग मुझ पर शाप कैसे हो!

    स्रोत :
    • पुस्तक : दूसरा सप्तक (पृष्ठ 166)
    • संपादक : अज्ञेय
    • रचनाकार : धर्मवीर भारती
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 2012

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