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उत्तर पुरुष से

uttar purush se

प्रमोद कुमार महांति

प्रमोद कुमार महांति

उत्तर पुरुष से

प्रमोद कुमार महांति

और अधिकप्रमोद कुमार महांति

    अरे बाबू श्यामघन!

    यदि कोई अंधा है तुममें

    ले ले मेरी आँख!

    उनकी जीभ की आग में जले मेरी प्रशंसा।

    तुम्हारा सागर और स्त्रियाँ

    लें मेरे लोतक नलिनी वन को।

    अपनी आख़री क़मीज़ के बोताम और

    कुछ रेज़गारी रखे जा रहा तुम्हारे भाग्य में

    शायद वे अच्छी लगें।

    तुम्हारी कुल्हाड़ी के लिए

    हर ऋतु का बग़ीचा दिए जा रहा

    मैं विनीत हाथों

    आफ़िस में तबादले से पहले

    शायद तुम जलावन बना लो।

    हे प्रतिस्पर्धी दिव्य तरुण!

    तुम्हारे बेटे-बेटी लें मेरा

    इहकाल, परकाल का पुण्य।

    पंडितजी को मिले हाथ,

    कुंडली या ललाट मेरा।

    तुम्हारे सैनिक लें मेरे घोड़े,

    छत्र- दंड, असि और चँवर

    ले जाएँ मेरी अंगूठी बेचकर

    चबेना ख़रीदने तुम्हारे गाँव का अनाथ बच्चा

    मेरी सारी स्लेट, वर्णमाला, भोजपत्र,

    ताम्रपत्र, रफ खाते

    आज से बनें तुम्हारी संपत्ति।

    मेरे सारे शब्द और अक्षर

    मेरे इन हाड़ों से बनी एकमात्र क़लम के

    बनें ये उत्तराधिकारी।

    तुम्हारे संगी लें मेरे मुकुट को बिना द्वंद्व युद्ध में।

    भाई ले खड़ाऊँ और

    तुम्हारा बेटा ले जाए मेरी तुलसी माला।

    हे मेरे शरशैया निर्माता!

    पुराना हुआ मेरा पिंजर।

    अब तो है विसर्जन की घड़ी।

    फिर और विलंब क्यों अब

    उम्र को घेरेगा निर्भूल सूर्यास्त।

    पिछले वर्ष का कैलेण्डर

    उस दीवार पर एकाध झूल रहा अब भी

    टूटे स्वप्न-सा,

    अस्पताल की सफ़ेद शैया

    दिख रही मृत हंस के पंख-सी,

    सब कह रहे वापस लौटते रथ का

    टकरा रहा कोलाहल।

    अतः हे बबुआ!

    दुःख नहीं मेरी अँगुली से

    मेरे चेहरे की तरह हुकम के राजा वाली

    ताश की आख़री पत्ती

    यदि कभी खो जाए।

    जानता हूँ, मैं अब प्रेमी नहीं।

    हर रोज़ घड़ी के काँटे-सा

    विमर्ष हो वृत्त में चलने में मुझे क्लांति नहीं।

    हे स्नेहास्पद आयुष्मान!

    तुम्हारे लिए पंख लगा ताड़-पत्र का छाता

    खड़ाऊँ, जनेऊ और मयूर पंख,

    चाँदी जड़ी सींग की छड़ी

    'चात चातुरी' अनन्या प्रेमिका दे रहा।

    हे अनागत आदम!

    तुम्हारे लिए यहाँ एकत्र ईसा के क्रूस संग

    फलों से लदे निषिद्ध पेड़ रखे जा रहा।

    हे शेक्सपियर के नए युवराज!

    तुम्हारी पृथ्वी को और भी नील करने छोड़े जा रहा

    तुम्हारी माटी में मेरा शरीर।

    फिर भी यदि कुछ व्यक्तिगत रह गया मेरा

    वह सारा अहं

    इन लकड़ियों के धुँआ पर रख दिया

    यहाँ तक कि

    तुम्हारे पाँवों तले राख पर

    मेरी टूटी-फूटी कबर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 193)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : प्रमोद कुमार महांति
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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