वे उतनी ही लड़ाकू थीं
जितना कि उनका सेनापति
वे अपनी ख़ूबसूरती से
कहीं ज़्यादा आक्रमक थी
अपने जूड़े में उन्होंने ईचा बा की जगह
साहस का फूल खोंसा था
उम्मीद को उन्होंने अपने कानों में
बालियों की तरह पिरोया था
हक़ की लड़ाई में
उन्होंने बोया था आत्मसमान का बीज
उनकी जड़ें गहरी हो रही है
फैल रही हैं लतरें
गाँव दर गाँव
शहर दर शहर
छहुरों से
पगडंडियों से
गलियों से बाहर
आँगन में
गोबर पाथती माँ
सदियों बाद
स्कूल की चौखट पर पहुँची बहन
लोकल ट्रेन से कूदती हुई
दफ़्तर पहुँची पत्नी
और भोर अँधरे
दौड़-दौड़ कर खेतों की ओर
चौराहों की ओर
आवज़ उठाती
सैकड़ों अपरिभाषित रिश्तों वाली औरतें
ख़तरनाक साबित हो रही हैं
दु:स्वप्नों के लिए
उन्होंने अपने जूड़ों में
खोंस रखा है साहस का फूल
कानों में उम्मीद को
बालियों की तरह पिरोया है
धरती को सिर पर
घड़े की तरह ढोई
लचकते हुए जा रही हैं
उलगुलान की औरतें,
धरती से प्यार करने वालों के लिए
उतनी ही ख़ूबसूरत
और उतनी ही ख़तरनाक
धरती के दुश्मनों के लिए।
- रचनाकार : अनुज लुगुन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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