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तू आज फिर क्यों उदास है?

tu aaj fir q udah hai

सुषमा सिंह

सुषमा सिंह

तू आज फिर क्यों उदास है?

सुषमा सिंह

और अधिकसुषमा सिंह

    तू उठ, तोड़ दे अपनी वर्जनाओं की बेड़ियाँ

    तू तोड़ दे सीता के मानक

    तू बन जा चंडी और काली

    तू उठ, समाज को तेरे काली रूप की तलाश है

    तू उठ, तू संहार कर उन मान्यताओं का

    जिसने सदियों से जकड़ रखा है तुझे

    तेरे पैरों में डाल दी है बेड़ियाँ

    तू उठ, चल और बेतहाशा दौड़

    और छोड़ दे बहुत पीछे

    उनको जो तुझे रोकने की कोशिश करें

    तू उठ, चल और दौड़, बेतहाशा दौड़

    तू ख़ुद को मत मिटा

    खोज अपने अस्तित्व को

    और मिटा दे उनको

    जिन्होंने तुझे ख़ुद को भूलने पर मजबूर किया

    ख़ुद में दफ़्न कर तू ख़ुद को

    बन तू रोशनी की मशाल

    और लगा दे चिंगारी उनको

    जिन्होंने कोशिशें कीं

    तेरे ही वजूद में तुझे दफ़्न करने की

    तू उठ, चल और दौड़

    बेतहाशा दौड़

    तुझे रुकना नहीं है

    तुझे थकना नहीं है

    तू बन क्रांति की मशाल

    जिसे कभी बुझना नहीं है

    पुनः प्रतिस्थापित कर दे उस कालखंड को

    जिसमें मैत्रेयी भी थी और घोषा भी थी

    अपाला भी थी और विश्ववारा भी थी

    जो रचती थी 'ऋग्वेद' की ऋचाएँ

    और करती थीं ऋषि-मुनियों से शास्त्रार्थ

    फिर तू क्यों शांत है?

    क्यों सहती है?

    चुपचाप उनके अत्याचारों को

    जो लगे हैं तेरे ही वजूद को ख़त्म करने में?

    तू बचा ले उनके क्रूर जाल से अपने आपको

    वो शिकार करना चाहते हैं तेरा

    खेलना चाहते हैं आखेट

    तू मत बन किसी का शिकार और खिलौना

    तू भी खेल ऐसा खेल

    जिसमें शह हो तेरी और मात किसी और की

    तू उठ, तू चल, तू दौड़ और बेतहाशा दौड़

    स्रोत :
    • पुस्तक : बताओ मनु (पृष्ठ 13)
    • रचनाकार : सुषमा सिंह
    • प्रकाशन : हिन्द युग्म
    • संस्करण : 2022

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