दरख़्त और दरख़्त
सूखे दरख़्त—हरे दरख़्त।
ख़ूबसूरत चेहरे वाली वह लड़की
जाती है चुनने जैतून-फल।
उधर पवन, बुर्जियों-मीनारों का प्रेमी पवन
डाल देता है फंदा बाँहों का अपनी
उसकी क्षीण कटि में।
आसमानी और हरित परिधानों पर
गहरे रंग के लंबे चोगे डाले
गुज़र चुके हैं चार अश्वारोही
अंदलूसियाई ट्टुओं पर सवार।
(अनुनय करते हुए—अनु०)
‘कार्दोबा11 चलो न, लड़की!’
गुज़र चुके हैं चार युवा साँड़-जोधा—
नारंगी रंग के उनके परिधान
उनकी तलवारें बेशक़ीमती चाँदी की
और लचपचाती हुई उनकी कमर।
(अनुनय करते हुए—अनु०)
‘सेविले12 चलो न, लड़की!’
लड़की कोई ध्यान नहीं देती।
फिर जब शाम हुई सिंदूरी
रोशनी को राख करती
तो गुज़रा एक युवक
गुलाब और चंद्रपुष्प लिए हुए।
(अनुनयपूर्वक—अनु०)
‘ग्रानादा23 चलो न, लड़की!’
लड़की कोई ध्यान नहीं देती।
ख़ूबसूरत चेहरे वाली लड़की
अब भी चुने जा रही है जैतून-फल
कटि के चारों ओर
पवन की मनहूस बाँह महसूसती हुई।
दरख़्त और दरख़्त
सूखे दरख़्त—हरे दरख़्त।
- पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 163)
- रचनाकार : फेदेरीको गार्सिया लोर्का
- प्रकाशन : मेधा बुक्स
- संस्करण : 2003
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