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शीला सिद्धांतकर

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शीला सिद्धांतकर

और अधिकशीला सिद्धांतकर

    अनचाहे गर्भ की तरह

    पालती-पोसती रही हूँ

    कविताएँ

    बलात्कार

    समय ने जो किया

    हमारे साथ

    हम सह गए

    उस दारुण दुख को

    दुनिया की नज़रों में

    हम ज़िंदा हैं

    लाश में तब्दील ज़िंदगी को

    घसीटते

    थके-हारे

    मौत के दरवाज़े खटखटाते

    बदहवास

    हम कहाँ जाते हैं

    हमें ख़ुद पता नहीं होता

    ऐसे अनचाहे क्षणों के दर्द को

    तुम कविता कह कर

    महिमा-मंडित करते हो

    जबकि सच यह है

    कि मैंने भी चाहा था जीना

    आज़ाद होना

    चहकना-महकना

    ज़िंदगी के अनंत आकाश में खो जाना

    इसलिए

    तुम्हारी कविता-कहानी

    तुम्हारा मंच

    तुम्हारी व्यवस्था

    तुम्हीं को मुबारक

    हमें ज़िंदगी से कमतर

    कुछ भी नहीं चाहिए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : परचम बनें महिलाएँ (पृष्ठ 1)
    • रचनाकार : शीला सिद्धांतकर
    • प्रकाशन : निधि बुक्स
    • संस्करण : 2009
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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