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बाज़ारों की तरफ़ भी

bazaron ki taraf bhi

कुँवर नारायण

कुँवर नारायण

बाज़ारों की तरफ़ भी

कुँवर नारायण

आजकल अपना ज़्यादा समय

अपने ही साथ बिताता हूँ।

ऐसा नहीं कि उस समय भी

दूसरे नहीं होते मेरे साथ

मेरी यादों में

या मेरी चिंताओं में

या मेरे सपनों में

वे आमंत्रित होते हैं

इसलिए अधिक प्रिय

और अत्यधिक अपने

वे जब तक मैं चाहूँ साथ रहते

और मुझे अनमना देखकर

चुपचाप कहीं और चले जाते।

कभी-कभी टहलते हुए निकल जाता हूँ

बाज़ारों की तरफ़ भी :

नहीं, कुछ ख़रीदने के लिए नहीं,

सिर्फ़ देखने के लिए कि इन दिनों

क्या बिक रहा है किस दाम

फ़ैशन में क्या है आजकल

वैसे सच तो यह है कि मेरे लिए

बाज़ार एक ऐसी जगह है।

जहाँ मैंने हमेशा पाया है।

एक ऐसा अकेलापन जैसा मुझे

बड़े-बड़े जंगलों में भी नहीं मिला,

और एक ख़ुशी

कुछ-कुछ सुकरात की तरह

कि इतनी ढेर-सी चीज़ें

जिनकी मुझे कोई ज़रूरत नहीं!

स्रोत :
  • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 185)
  • रचनाकार : कुँवर नारायण
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2008

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