जब आदमी आदमी नहीं रह पाता
jab adami adami nahin rah pata
दरअसल मैं वह आदमी नहीं हूँ जिसे आपने
ज़मीन पर छटपटाते हुए देखा था।
आपने मुझे भागते हुए देखा होगा
दर्द से हमदर्द की ओर।
वक़्त बुरा हो तो आदमी आदमी नहीं रह पाता। वह भी
मेरी ही और आपकी तरह आदमी रहा होगा। लेकिन
आपको यक़ीन दिलाता हूँ
वह मेरा कोई नहीं था, जिसे आपने भी
अँधेरे में मदद के लिए चिल्ला-चिल्लाकर
दम तोड़ते सुना था।
शायद उसी मुश्किल वक़्त में
जब मैं एक डरे हुए जानवर की तरह
उसे अकेला छोड़कर बच निकला था ख़तरे से सुरक्षा की ओर,
वह एक फँसे हुए जानवर की तरह
ख़ूँख़ार हो गया था।
- पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 94)
- रचनाकार : कुँवर नारायण
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 2008
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