Font by Mehr Nastaliq Web

अपने हिस्से में लोग आकाश देखते हैं

apne hisse mein log akash dekhte hain

विनोद कुमार शुक्ल

विनोद कुमार शुक्ल

अपने हिस्से में लोग आकाश देखते हैं

विनोद कुमार शुक्ल

अपने हिस्से में लोग आकाश देखते हैं

और पूरा आकाश देख लेते हैं

सबके हिस्से का आकाश

पूरा आकाश है।

अपने हिस्से का चंद्रमा देखते हैं

और पूरा चंद्रमा देख लेते हैं

सबके हिस्से का चंद्रमा वही पूरा चंद्रमा है।

अपने हिस्से की जैसी-तैसी साँस सब पाते हैं

वह जो घर के बग़ीचे में बैठा हुआ

अख़बार पढ़ रहा है

और वह भी जो बदबू और गंदगी के घेरे में ज़िंदा है।

सबके हिस्से की हवा वही हवा नहीं है।

अपेन हिस्से की भूख के साथ

सब नहीं पाते अपने हिस्से का पूरा भात

बाज़ार में जो दिख रही है

तंदूर में बनती हुई रोटी

सबके हिस्से की बनती हुई रोटी नहीं है।

जो सबकी घड़ी में बज रहा है

वह सबके हिस्से का समय नहीं है।

इस समय।

स्रोत :
  • पुस्तक : कवि ने कहा (पृष्ठ 12)
  • रचनाकार : विनोद कुमार शुक्ल
  • प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन
  • संस्करण : 2012

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY