अपने हिस्से में लोग आकाश देखते हैं
apne hisse mein log akash dekhte hain
विनोद कुमार शुक्ल
Vinod Kumar Shukla
अपने हिस्से में लोग आकाश देखते हैं
apne hisse mein log akash dekhte hain
Vinod Kumar Shukla
विनोद कुमार शुक्ल
और अधिकविनोद कुमार शुक्ल
अपने हिस्से में लोग आकाश देखते हैं
और पूरा आकाश देख लेते हैं
सबके हिस्से का आकाश
पूरा आकाश है।
अपने हिस्से का चंद्रमा देखते हैं
और पूरा चंद्रमा देख लेते हैं
सबके हिस्से का चंद्रमा वही पूरा चंद्रमा है।
अपने हिस्से की जैसी-तैसी साँस सब पाते हैं
वह जो घर के बग़ीचे में बैठा हुआ
अख़बार पढ़ रहा है
और वह भी जो बदबू और गंदगी के घेरे में ज़िंदा है।
सबके हिस्से की हवा वही हवा नहीं है।
अपेन हिस्से की भूख के साथ
सब नहीं पाते अपने हिस्से का पूरा भात
बाज़ार में जो दिख रही है
तंदूर में बनती हुई रोटी
सबके हिस्से की बनती हुई रोटी नहीं है।
जो सबकी घड़ी में बज रहा है
वह सबके हिस्से का समय नहीं है।
इस समय।
- पुस्तक : कवि ने कहा (पृष्ठ 12)
- रचनाकार : विनोद कुमार शुक्ल
- प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन
- संस्करण : 2012
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