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तारों के पीछे

taron ke pichhe

अनुवाद : रत्नमयी देवी दीक्षित

वयलार रामवर्मा

वयलार रामवर्मा

तारों के पीछे

वयलार रामवर्मा

और अधिकवयलार रामवर्मा

    सर्वत्र सेहुआँ की बिन्दियाँ लगे हुए वक्षस्थल

    को आगे करके वह नील आकाश, रात्रि को जब सोता है

    तब उस गगन में आँखे गड़ाकर, अर्द्ध-स्तब्ध बना

    खड़ा हुआ करता है वह साहित्य-प्रवाचक!

    अंतरिक्ष के वक्षस्थल पर अंगुलियाँ चलाकर

    वैसे नखक्षत लगाने वाले उस महानुभाव को

    आपने देखा होगा—जीवन-भार की

    गाड़ी खींचकर उस मार्ग पर जाते हुए।

    घूमते चक्रों का चरमर अथवा फेनायित हृदयों से

    उमड़कर निकलने वाले आपके गीत

    उसके ध्यान को आकर्षित नहीं करते—इस

    क्षणिक प्रपंच की मुग्धता का उसकी दृष्टि में क्या सनातन मूल्य है?

    काल के लाड़-प्यार में नहीं, उग्र प्रतिषेधरूपी

    ज्वाला में अंकुरित होकर पल्लवित हुए संस्कार,

    हृदय की शिराओं को परस्पर शृंखलित करके

    युग-युगांतर की सृष्टि करने वाले संस्कार

    बुनकर—ताना-बाना मिलाकर—निर्मित जीवन-क्रम में

    बरसे हुए आँसुओं की लहरों के बारे में,

    उनमें विकसित होने वाले मानव-प्रयत्नों की

    नव-चैतन्य फैलाने वाली पुष्प-मंजरियों के बारे में,

    वह ध्यान नहीं देगा। कवि है। आकाश के

    मुग्धभावों में ही शाश्वत मूल्य देख सकता है न!

    उस दिन एक बार मैं एक जुलूस में, देश के

    स्वाभिमान तथा भविष्य के स्वप्नों से विस्फारित-नेत्र,

    और अपने अधरों में मनुष्य की मुक्तिगाथा लेकर

    जब चल रहा था, तब, दूर मैंने उसको देखा।

    मालूम होता है, मेरी ओर अंगुलि-निर्देश करते हुए उसने कहा—

    ये सब कब शाश्वत मूल्य को पा सकेंगे?

    मैं खिलखिलाकर हँस पड़ा—जीवन-स्पंदनों में

    अंकुरित होने वाली सर्गात्मक गान-मेखलाओं को,

    मानव-प्रयत्नों को गीत गवाने वाली

    मेरी गानात्मक काव्य-निम्नगाओं को,

    एक पाव मिट्टी से रोकना चाहने वाले उस

    घटिका-यंत्र के चौकीदार को देखकर!!

    वह भी कवि है—काल-चक्र को बाँध रखने के लिए

    लगाम हिलाता हुआ सदा वहाँ दिखाई देता है!

    मेरी अनुकंपा को एक बार हँस देना ही सूझा—

    अच्छा है! ईश्वर ही तुम्हारी रक्षा करे!

    शत-शत युगों से क़दम बढ़ा-बढ़ा कर

    चढ़ता जाने वाला मनुष्य ही मेरा शाश्वत मूल्य है।

    तुम्हारे लिए तो वह आकाश के अव्यक्त स्थलों से

    प्रकाश दिखाने वाली छोटी-सी कोमल विद्युल्लता मात्र है!

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 663)
    • रचनाकार : वयलार रामवर्मा
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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