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तानाशाह ज़ार का पतन

tanashah zar ka patan

सुब्रह्मण्य भारती

सुब्रह्मण्य भारती

तानाशाह ज़ार का पतन

सुब्रह्मण्य भारती

महाकालि की, पराशक्ति की, वहाँ कृपा की दृष्टि हुई है।

देखो-देखो, रूस देश में एक महा युगक्रांति हुई है।

देख अंत अत्याचारी का, हैं प्रसन्न अत्यधिक देवगण।

यह नवीनता देखे दुनियाँ, देख जिसे मरते पिशाचगण॥1॥

अन्यायी हिरण्य-सा क्रूर ज़ार ने अपना राज्य किया था,

उस शासन में सद्धर्मी सज्जन, अनाथ बन तड़प रहा था,

महामूढ़ था, मान लिया था धर्म तुच्छ, उसके शासन में—

मूल पाखंड भरे थे जैसे सर्प भरे होते हैं वन में॥2॥

श्रमी किसानों को अन्न था, बस बीमारियों का स्वराज था।

जो असत्य के आश्रय में थे, उनके घर ऐश्वर्य भरा था।

फाँसी थी आसान, सत्यवादी को बंदीगृह की पीड़ा।

साइबेरिया के वन में थी मृत्यु बुलाती करती क्रीड़ा॥3॥

हाँ. बोले तो कारावास, मिले वनवास अगर क्यों पूछें।

तृप्त हुआ सद्धर्म, अधर्म धर्म था नीच ज़ार के नीचे।

पिछला उर माँ का त्रिकाल में, सत्य संघ भक्तों की पालक—

कृपादृष्टि फेरी अपनी, यम ज़ार महापापी कुल-घातक॥4॥

गिरा ज़ार शासन, जैसे हिमालय गिरे धरा पर।

धर्मविनाशक असत् वचन से एक-एक मिटे समय पर।

झंझा के झोकों में जैसे वृक्ष टूट ईंधन बन जाते

दुनियाँ ने देखा वैसे, अधर्मियों को विनष्ट हो जाते॥5॥

देखो यह जनतंत्र, एक-सा न्याय सभी को मिला है।

जन शासन है, पनप सकती दासवृत्ति, उद्घोष हुआ है।

गिरा हुआ कलिकाल, गिरी दीवार, यहाँ ज्यों ठोकर खाकर।

खड़ा हो रहा है कृतयुग देखो उसकी टूटी काया पर॥6॥

स्रोत :
  • पुस्तक : राष्ट्रीय कविताएँ एवं पांचाली शपथम् (पृष्ठ 76)
  • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक एन. सुंदरम् और विश्वनाथ सिंह 'विश्वासी'
  • प्रकाशन : ग्रंथ सदन प्रकाशन
  • संस्करण : 2007

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