चढ़ा हुआ है नट
ऊँचे खंभे पर
और लगा रहा है आग
अपने कपड़ों में
देख रहा लोगों का हुजूम
अपनी जगह से
इंतज़ार में—
वह अब कूदेगा
आस-पास फैलती हुई उसके
साफ़ दिख रही हैं लपटें
कई कलाबाज़ियाँ खाते सहसा
नीचे जलकुंड में
लगाता वह
मौत की छलाँग
डूबती इक आवाज़
उछलती बूँदें
लगता जैसे बिखर गए उसके चिथड़े
फैल गया उसका रक्त पानी में
लेकिन अगले दिन
वह फिर होता है
शिखर पर!
- रचनाकार : प्रेम रंजन अनिमेष
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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