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सुनो

suno

सुनो,

कुछ गढ़ूँ नया?

नवीन विस्तार पाने की एक कोशिश

क्यों? है संभव?

मानो, कि तुम हो

चौसठ घर वाले शतरंज की

सत्ताधारी क्वीन!

मानना ही पड़ेगा क्योंकि

किसी भी सूरत में ताज़ तो तुम्हें ही मिलेगा

पर मैं क्या?

मुझमे क्या है दिखता

हाथी-घोड़ा-नाव

यानि जानवर जैसा समझूँ स्वयं को

बाबा

फिर वजीर?

लेकिन इतनी भी औकात नही!

चलो ऐसा करते हैं

'क्वीन' यानी तुम

और, तुम्हारे ठीक सामने वाला

पैदल सिपाही मैं!

ताकि कैसे भी बस क़रीबी बनी रहे

फिर

फिर मैं हर संभव करूँगा रक्षा तुम्हारी

हाँ, जान देने तक की शर्त है शामिल!

और तुम

तुम बस मुझमे बनाए रखना विश्वास

ट्रस्टड आर्मी!

ज़िंदगी/खेल यूँ ही बढ़ती रहेगी आगे

अंततः समय चालों के साथ

बस आठवें अंतिम पंक्ति तक पहुँच पाऊँ

शायद यही होगा तुम्हारे साथ से हासिल

मेरे सफलता का पैमाना

काश, कहीं इससे पहले धराशायी हो जाऊँ?

तो होगा

एक शानदार विस्मयकारी परिवर्तन

प्यादे से वजीर में परिणत!!

सुनो!

विश्वास डगमगाए नही

वजीर बनते ही होगी मेरी पहली चाल

चेक मेट!

समझी क्वीन!

बस इतना कह दो न—

विल वेट

इंतज़ार का सबब भी है प्रेम ही!

स्रोत :
  • रचनाकार : मुकेश कुमार सिन्हा
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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