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सुंदर चीज़ों के लिए बुआ की याद

sundar chizon ke liye bua ki yaad

कुशाग्र अद्वैत

कुशाग्र अद्वैत

सुंदर चीज़ों के लिए बुआ की याद

कुशाग्र अद्वैत

और अधिककुशाग्र अद्वैत

    उसकी रसोई की देहरी पर खड़ा हूँ

    चाहता हॉल में बैठता, हवा खाता

    पलटता मैगज़ीन, बदलता चैनल

    या उसके बच्चे से कुछ बतियाता

    वह भी यह चाहती है

    तब ही कहती है―

    तुम वहीं आराम से बैठो,

    कब का निकले होगे!

    थक चुके होगे,

    बस बनने को है,

    फिर आती हूँ।

    कलछुल हिलाते-डुलाते

    जाने क्या पकाते-वकाते

    कुछ-कुछ गुनगुनाती है

    जिसकी बहुत मद्धम आँच

    मुझ तक आती है

    उस से कहूँगा यदि

    कि तुम्हारे लिए नहीं

    इस गीत के लिए खड़ा हूँ

    वह सचेत हो सकती है

    गाना रोक भी सकती है

    मेरी पसंदगी का इक नाज़ुक सिरा

    जुड़ा है ऐसी आपकी सुंदर चीज़ों से

    जिसे करते हैं लोगबाग बेध्यानी में

    या यूँ ही, कभी-कभार, शौक़िया

    जैसे नाचती थी मेरी छोटी बुआ

    कभी बेध्यानी में तो कभी शौक़िया

    बिजुली गुल होने पर तो अक्सर हाँ

    हर नए गाने पर ख़ुद को आज़माती

    कभी बजता गाना, कभी ख़ुद गाती

    दूर से जाती रेल की आवाज़ आती

    कभी पकड़ती मेरी छोटी उँगली

    गोल-गोल घूमती, मुझे भी नचाती

    क़मीज़ में पचरंगी दुपट्टा लपेट लेती

    कमरे की तरफ़ किसको आने देती

    कभी ऐश्वर्या, कभी माधुरी

    कभी वह श्रीदेवी होती

    नाचते-नाचते हँसने लगती

    नाचते-नाचते नदियाँ रोतीं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुशाग्र अद्वैत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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