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बड़ा-सा पत्थर मैं कहाँ से लाऊँ

baDa sa patthar main kahan se laun

विमल कुमार

विमल कुमार

बड़ा-सा पत्थर मैं कहाँ से लाऊँ

विमल कुमार

और अधिकविमल कुमार

    वह मेरे पास

    एक काग़ज़ की तरह रखकर अपने को

    चली गई है शहर में

    किसी काम से

    कब लौटकर आएगी

    कुछ नहीं कहा उसने

    उसकी किताबें भी पड़ी हैं यहीं

    उसकी पेंसिलें

    उसकी तस्वीरें

    उसकी चिट्ठियाँ

    आसमान पर बादल छाए हैं

    बारिश होने ही वाली

    कुछ भी हो किताबों को बचाना है भीगने से

    तस्वीरें कहीं पानी में बह जाएँ

    और पेंसिलें कहीं उड़ जाएँ हवा में

    अँधेरा छा रहा

    तूफ़ान आने वाला

    उसकी तमाम चीज़ों पर रखना होगा

    एक बड़ा-सा पत्थर

    बड़ा-सा पत्थर मैं कहाँ से लाऊँ?

    सचमुच खाना नहीं खाया है उसने

    सवेरे का ही नाश्ता किया है

    शाम को थकी-हारी

    भूखी-प्यासी लौटेगी

    आते ही पूछेगी

    कहाँ हैं मेरे काग़ज़

    कहाँ हैं मेरी किताबें

    कहाँ हैं...

    ज़रा-सी भी जमी होगी काग़ज़ पर धूल

    कहीं भी होंगे अगर किताबों पर निशान

    कोई भी चीज़ होगी ग़ायब

    मैं पकड़ा जाऊँगा!

    तब क्या होगा

    मेरे पास इसका जवाब!

    मैं इतना ही कह पाऊँगा

    मुझे कोई बड़ा-सा पत्थर नहीं मिला

    स्रोत :
    • पुस्तक : सपने में एक औरत से बातचीत (पृष्ठ 30)
    • रचनाकार : विमल कुमार
    • प्रकाशन : आधार प्रकाशन
    • संस्करण : 1992

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