बूढ़े मछुआरे का गीत
buDhe machhuare ka geet
ओ लहरो, गो नाच रही हो मेरे चरणों में ऐसे
चंचल अंगों वाले बच्चे क्रीड़ा करते हों जैसे,
झलमल करतीं, उझक झाँकतीं, आगे बढ़तीं कल-कल कर;
जब वसंत था अधिक सुहाना मेरा, तुम थीं सुंदरतर,
और अधिक सुखमा-आगार,
जब न मसें भीगीं, न पड़ी थी मेरे दिल के बीच दरार।
अब न मछलियाँ वैसी आतीं उछल-उछलकर ज्वारों पर
आह, जिन्हें मैं ले जाता था अपनी गाड़ी में भरकर,
दबी भार से जो चलती थी सड़कों पर करती चरमर,
और पहुँचती थी क़स्बे को जब चढ़ आती थी दुपहर,
जब लग जाता था बाज़ार,
जब न मसें भीगीं, न पड़ी थी मेरे दिल के बीच दरार।
आह, मछेरे की गर्वीली छोरी, अब उतनी सुंदर
कहाँ रही तू जब नौका ले जाता था मैं लहरों पर,
बल्ले वाली बाँह चलाती थी डाँडों की छपर-छपर,
भीगा जाल सुखाती थी तू फैला-फैलाकर तट पर,
सखियों से करती तकरार,
जब न मसें भीगीं, न पड़ी थी मेरे दिल के बीच दरार।
- पुस्तक : मरकत द्वीप का स्वर (पृष्ठ 28)
- रचनाकार : विलियम बटलर येट्स
- प्रकाशन : राजपाल एंड संस
- संस्करण : 1965
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