स्मृतियाँ एक दोहराव हैं

smritiyan ek doharav hain

मनीष कुमार यादव

मनीष कुमार यादव

स्मृतियाँ एक दोहराव हैं

मनीष कुमार यादव

और अधिकमनीष कुमार यादव

    उत्कंठाओं के दिन नियत थे

    प्रेम के नहीं थे

    चेष्टाओं की परिमिति नियत थी

    इच्छाओं की नहीं थी

    परिभाषाएँ संकुचन हैं

    जो कभी प्रेम बाँध पाईं

    देह

    स्मृतियाँ एक दोहराव हैं

    जो बीत गए की पुनरावृत्ति का

    दंभ तो भरती हैं लेकिन

    अपनी सार्थकता में अपूर्ण

    शब्दभेदी बाण की तरह

    अंतस में चुभती रहती हैं

    विरह बिम्बों से भरा दर्पण है

    जो एक और बिम्ब के

    उर्ध्वाकार समष्टि का भार

    सहन करने में असहाय

    हर एक विलग क्षण में टूटता रहता है

    दर्पण का टूटना

    प्रतीक्षाओं के उत्तरार्ध की निराशा है

    उससे छिटककर गिरा एक बिम्ब

    कृष्ण के पाँव में धँसा हुआ

    बहेलिए का तीर है

    प्रेम मनुष्य के लिए सब कुछ बचा लेता है

    जो प्रतीक्षाओं को नहीं प्राप्त होता

    सब जाते हैं उद्विग्नता से प्रेम की तरफ़

    और लौटते हैं

    स्मृतियों की खोह में बरामद होते हुए

    एकांत के समभारिक क्षणों में कहीं कोई स्थायित्व नहीं है

    वेदनाएँ अभ्यस्त एकालाप हैं

    और एकांत—

    अनीश्वरवाद की पीड़ा!

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनीष कुमार यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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