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माली,

बाग केरि ताली लेइ

तुमहें नाईं

बहुत लोग माली बनिकै आये रहइँ

मुलु वइ सब जाली लाग

तुम्हे असली लगेउ

सेष सब नकली लाग

तुमतेइ अपनु रागु जाग

कुछु अनुरागु लाग

यहि ते एकु बिरवा नाईं

दुइ नाईं

पूरा बागु बागु

तुमहे सौंपा गा

कि तुम यहि मा पउधा रोपिहउ

बाग का सौदा करिहउ

तुम यहिका

सिंचिहउ

गोड़िहउ

फुलइहउ

फलइहउ

मुलु जब तक तुमार बाबा रहे

उनकी नैतिकता की नाप रहइ

पाती तकु पापु रहइ

फूलु अभिसाप रहइ

कहति रहइँ—

मालिकन केरि थाती हइ

यहि की सेवइ सेने

हमारि बड़ी छाती हइ।

मुला,

तुमार अरमान बदले

नैतिकता के मान बदले

तुम पराये बगुचा पर

बजाजी करइ लागेउ

अस जुआँ सूझा

जनता के बाग की

बाजी लगावइ लागेउ

तुम तौ छुट्टा बहइ लागेउ

सेवा की मेवा चहइ लागेउ

रत्ती-रत्ती पत्ती तोरेउ,

फूलन केरा इतर बनायउ

फल खायउ

तोरेउ रूखा

की मिसाल बनिगेउ

नौंधइ

का सौदा कइ डारेउ

इहि ते अब

तुमते मनु फिरिगा हइ

पूरी तरह जरिगा हइ

स्रोत :
  • पुस्तक : घास के घरउँदे (पृष्ठ 70)
  • रचनाकार : श्यामसुंदर मिश्र ‘मधुप’
  • प्रकाशन : आत्माराम एण्ड संस, कश्मीरी गेट, दिल्ली
  • संस्करण : 1991

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