शब्द अब यहीं रहते हैं
shabd ab yahin rahte hain
शब्द आख़िर ठहर गए
शब्द अब यहीं रहते हैं
आपस में टकराते हैं, भिड़ते हैं
धकियाते हैं, कोसते हैं,
खसोटने पर आमादा दिखते हैं, आख़िर शब्द हैं
ठहर गए तो क्या!!
ख़ामोश तो नहीं हुआ!!
शब्दों को आपस में भिड़ने देना ठीक रहेगा
पर देखो वे चुप न रहें
उनकी सिसकियाँ, चीख़ों की आवाज़
अनवरत आनी चाहिए
उन्हें अभी संगठित होकर चीत्कार में बदलना है
दौड़ें नहीं, ठोकर खाकर हताहत हो सकते हैं
गट्ठे छिटक सकते हैं, तिनकों में बदल सकते हैं
संभालो ज़रा, ठहरे शब्दों को मुट्ठी में घुटने मत देना
उन्हें आवाज़ को बुलंदी पर ले जाने का काम तुम्हारा है
हम सबका है
हम नहीं ठहरे, हमने तो शब्दों को इकट्ठा किया है, मज़बूत किया है
गले से चीत्कार बन फूट निकलने के लिए
प्रतिरोध में!!
- रचनाकार : मीता दास
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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