शुरू तो कहीं से भी किया जा सकता है
shuru to kahin se bhi kiya ja sakta hai
केशव तिवारी
Keshav Tiwari
शुरू तो कहीं से भी किया जा सकता है
shuru to kahin se bhi kiya ja sakta hai
Keshav Tiwari
केशव तिवारी
और अधिककेशव तिवारी
शुरू तो कहीं से भी
किया जा सकता है
जेठ की धूप और यह सन्नाटा
हर तरफ़ आग ही आग
आग इन दिनों मायके में है
पिता के घर निरबंध दौड़ रही है
गिट्टी तोड़ रहे थे पहाड़ी लोग
पहाड़ जैसे ही मज़बूत और रंगवाले
गिर रहे चिल्ली के पत्तों के बीच उसी के पेड़ से
पीठ टिकाए चरवाहे
रह-रहकर गा उठते बिरहा
यह सिर्फ़ मनसायन नहीं है
एक ज़िंदा आवाज़ का दख़ल है
सन्नाटे और धूप के बीच
सिल पर एक कट्ठा प्याज़
और एक आम
बस नमक और मिर्च
कनस्तर में दो सेर आटा
और हर हाल में जीने की ललक
शुरू तो यहाँ से भी
किया जा सकता है।
- रचनाकार : केशव तिवारी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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