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शेरों की गिनती

sheron ki ginti

असद ज़ैदी

असद ज़ैदी

शेरों की गिनती

असद ज़ैदी

और अधिकअसद ज़ैदी

    गिनती में तो वे सिर्फ़ 304 निकले

    और हो सकता है कुछ को दो बार गिन लिया गया हो

    क्योंकि 24 घंटे के अंदर वही शेर

    दोबारा उसी डबरे पर पानी पीने जाए तो

    ज़रूरी नहीं कि मौक़े पर मौजूद दूर मचान की

    आड़ में छिपा आदमी उसे पहचान ही ले

    और वह आदमी अब ड्यूटी पर हो

    जिसने जिसे पहले गिन लिया था

    फिर शेर की भी क्या भरोसा

    दूसरी बार वह दूसरे डबरे पर पानी पीने

    पहुँच जाए और वहाँ छिपे

    गणनानायक को लगे कि लीजिए आया एक नया शेर

    फिर शेरों की वर्तमान गिनती का

    उनकी पिछली गिनती से भी एक ताल्लुक़ होता है

    दो बार तीन बार गिन लिया जाना आम बात है

    अगर पाँच साल पहले किसी ने उन्हें ढाई-तीन

    गुना गिन लिया तो इस साल

    इस साल की सच्ची गिनती गले पड़ जाएगी सरकार के

    सभी पूछेगे : कहाँ गए इतने सारे शेर

    पाँच वर्ष तक बेरोकटोक कौन करता

    रहा है शेरों का संहार?

    कितने करोड़ बच्चों को रोज़ शेरों के क़िस्से

    सुनाए जाते हैं सैकड़ों भाषाओं में

    उनकी कल्पना को रचा जाता है

    शेरों के मुद्रित रूपकों पर सर्फ़ हुई

    स्याही का वज़न तोलने पर

    304 असली शेरों से ज़्यादा ही निकलेगा

    जितने साधन उनकी तस्वीर बनाने और शबीह

    चमकाने में लग जाते हैं उतने से बनाया

    जा सकता है एक घना जंगल

    एक नया देश

    एक नया राज्य

    एक नया धर्म

    असंख्य आज्ञाकारी पेड़

    एक संयमित नदी

    शेरों को बार-बार गिनने

    की राजनीतिक

    ज़रूरत में निहित है एक शेर को

    अनेकों बार गिनने की सामाजिक ज़रूरत।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सरे−शाम (पृष्ठ 176)
    • रचनाकार : असद ज़ैदी
    • प्रकाशन : आधार प्रकाशन
    • संस्करण : 2014

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