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शापित प्रेम

shapit prem

अनुराग अनंत

अनुराग अनंत

शापित प्रेम

अनुराग अनंत

और अधिकअनुराग अनंत

    अवसाद का स्वाद मिट्टी-सा सोंधा होता है

    याद खारे पानी की झील है

    भूलना किसी स्मृति को नितांत व्यक्तिगत कर लेना है

    इतना व्यक्तिगत कि यदि आप चाहें तो भी किसी को बता सकें

    भाषा अपर्याप्त है उस चित्र के लिए

    जो आपके भीतर है

    जिसे आप देखते तो सकते हैं पर दिखा नहीं सकते

    मौन ज़ंग खाया हुआ ताला है

    तुम्हारी आवाज़ चोर चाभी

    और मेरा तुम्हारे साथ रहने का स्वप्न

    बारिश में भीगा हुआ चमड़े का जूता है

    रह-रहकर महकता-गंधाता है

    अगले मौसम तक किसी काम का नहीं रहेगा

    इस मौसम में भी मुश्किल से ही काम चलेगा

    जब-जब बरसेंगे बादल

    हमारे भीतर गीली मिट्टी की तरह महकेगा अवसाद

    कोई बच्ची खेलेगी एक्खट-दुख्खट

    कोई बच्चा दूर खड़ा निहारेगा उसे

    रात को हरसिंगार के फूल उगेंगे

    सुबह फ़र्श पर पड़े होंगे पुष्पों के शव

    कोई अशोक देखेगा इन्हें

    और अपना अस्त्र त्याग देगा

    कोई सिद्धार्थ किसी बच्चे का माथा चूमकर घर छोड़ देगा

    कोई बहेलिया अपने पिंजरे से चिड़िया उड़ा देगा

    कोई मछुआरा अपने जाल से मछली निकालकर सागर में बहा देगा

    अगले मौसम तक हम चाय की तरह चढ़े रहेंगे

    मद्धम आँच पर

    लोग हमें पिएँगे और भूल जाएँगे

    ज़रूरी क़िस्म की हिँसाएँ भी

    हम इस तरह बिछड़ेंगे कि दोनों तरफ़ शेष रहेंगे

    हम इस तरह शापेंगे एक दूसरे को

    जैसे कोई किसी का माथा चूमता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुराग अनंत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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