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शाम के साथ नहाना

sham ke sath nahana

नीलेश रघुवंशी

नीलेश रघुवंशी

शाम के साथ नहाना

नीलेश रघुवंशी

और अधिकनीलेश रघुवंशी

    मेरे प्यारे उत्पाती बच्चे

    जी भरकर उत्पात करते हो,

    शैतान कहीं के

    मन में आता है कान खींचूँ तुम्हारे,

    धीरे से दो-एक चपत भी जड़ दूँ

    नहा रही थी शाम को, बहुत मज़ा रहा था

    अचानक पेट पर साबुन मलते हुए तुम्हारा पैर,

    (शायद) मेरे हाथ में गया

    भैरा गई मैं, चीख़ पड़ी ज़ोर से

    मारे डर के, तुम भी दुबक गए जाने कहाँ

    तुम्हें भी तो चैन नहीं है, कुतुर-कुतुर करते रहते हो हमेशा

    पापा नहीं हैं तुम्हारे, उज्जैन गए हैं, देर रात तक आएँगे

    तुम्हें साथ देना चाहिए मेरा, कि परेशान करना चाहिए

    अगर कुछ हो जाता तुम्हें तो...?

    स्रोत :
    • रचनाकार : नीलेश रघुवंशी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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