जब पहली बार मल्लाह लकड़ी के टुकड़े पर चढ़कर
समुद्र के उस पार तक गया
क्षितिज हँसा उसे देखकर लहरों ने लगा लिया गले
मारे ख़ुशी के जल की अंतर्धारा ने नाव समेत भँवर में खींच लिया
मछलियाँ तट तक छोड़ने आईं। रेत उसके बदन पर चमक बन छा गई
ऐसा क्यों हुआ नहीं जानता मल्लाह
काँटे में फँसी मछली की तरह
कभी समुद्र मल्लाह के हाथों में होता है कभी मल्लाह समुद्र के हाथों में
हर वह चीज़ चुप है आज जिसका जन्म-गीत समुद्र है
हर पल डोल रही है धरती लगता है डर अब पानी से
मेरी आँखों के सामने मैंने अपनी बेटी को पानी में जाते देखा है
कहते मुँह फेरती है बूढ़ी मछुआरिन
अब तो समुद्र न लीलते बनता है, न उगलते
भागो-भागो पानी-पानी आवाज़ से अँधेरी रात में भागते हैं सब
मेरी माँ को सुनामी ले गई माँ मुझे बुलाती है रोज़ सपनों में आती है
नहीं, मैं कुछ नहीं याद करना चाहता
हमारा पिता था अन्ना था वो ऐसा करेगा हमें यकीन ही नहीं होता
क्यों-क्यों वह हमारा दुश्मन बन गया
अब तो उसकी ओर पीठ करने का भी मन नहीं
हर रात अँधेरे में काला-भूरा पानी चढ़ता है रेत में धँस गए हैं पाँव
भागते हुए भी भाग नहीं पा रहा मैं
सब लुट गया लुट गया सब कुछ, कुछ मत पूछो हमसे
न समुद्र समुद्र रहा और न हम मछुआरे मछुआरे रहे
हज़ारों हज़ार समुद्री यात्राएँ की हैं मैंने लेकिन
रविवार को आई सुनामी लहर के बाद नफ़रत हो गई है मुझे इसके आवेग से
जीवन भर प्यार किया जिससे उसी पर थूकता हूँ आज
इसको मेरे बेटे और मेरी पत्नी को छोड़ देना चाहिए था
मेरे शांतन की जगह यह कायर विश्वासघाती मुझे ही निगल लेता
ये तो शाप बना मेरे जीवन का
मेरे घर के बर्तन भी खा गया और गद्दे को खारा कर लटका दिया पेड़ पर
मेरी नाव और मछली पकड़ने का जाल कहते
गला रूँध जाता है कोचू बाबा का
मैं रोज़ यहीं बैठकर आश्चर्यचकित हो देखता हूँ समुद्र को
यह इतनी बुरी तरह से कैसे आहत कर सकता है मुझे
देखो इसकी क्रूरता को समुद्र का कछुआ कहते थे सब मुझे
मेरे पोते शांतन को जब यह ले जा रहा था
तब मैं एक बहती लकड़ी भी नहीं था
समुद्र जिससे प्यार करता है उसको तीसरे दिन लौटा देता है जीवित
वो मेरी माँ से बहुत प्यार करता है
माँ ने पूरे पिच्यासी बरस गुज़ारे हैं इसके साथ
माँ और समुद्र का साथ देखते पूरे पैंसठ बरस हो गए मुझे
कुएँ से भी गहरी आवाज़ में बोलता त्यागराजन
कुछ कहने-सुनने का मौक़ा भी नहीं दिया सुनामी ने
थोड़ा-सा समय देती तो माँ बताती उसे समुद्र के साथ के बारे में
देखना लहरें जैसे लेकर गई थीं माँ को वैसे ही लौटाकर ले आएँगी
माँ और समुद्र एक दूसरे को प्यार जो करते हैं
मैं और मेरी बहन दाबू खाना खा रहे थे
जैसे ही लहर आई मैं भागा और बच गया
लहरों ने मेरी माँ को घसीट लिया और ज़ोर से दीवार पर पटका
यह सब मैंने अपनी आँखों से देखा मेरे भीतर उस समय समुद्र था जीवित
नहीं तो भला मैं माँ और बहन को छोड़कर भागता
मुझे भी घाती बना दिया इसने
सब कुछ बह गया सुनामी में बचा है तो सिर्फ़ मेरा विश्वासघात
समुद्र क्यों छल करता है जब तब जीवन के साथ
क्यों मल्लाह के घर सुख-समृद्धि नहीं आती
क्यों छल और तट एक दूसरे के पर्याय हैं
हाय हमने भी जीवन-भर लाखों-करोड़ों को मारा
पानी जिनका जीवन था उसे उन्हीं से अलगाया
मल्लाहों की क़िस्मत
मछली को मारें तो मन से मरें न मारें तो पेट से मरें
फफक-फफककर रोता है बूढ़ा मल्लाह
तूने जनम ही क्यों लिया इस धरती पर,
न हम देव हैं रे, न दानव क्यों उगलता है बार-बार विष
हममें से कोई शिव नहीं है जो तेरे विष को कंठ में धर ले
नीलकंठ
तुमने देवों के लिए विष धारण किया भूल गए तुम
पृथ्वी पर मछुआरे भी बसते हैं
जिन्हें जब तक छलता है समुद्र और हँसता है
अगर ये कथा सच्ची होती तो
देव और दानवों के बीच हम मछुआरे भी होते
मल्लाह छल नहीं करता छली नहीं है वो
अरे नासमझ तेरे भीतर के सारे अनमोल रत्न लुट गए,
तेरा अमृत्व भी तेरा न रहा तू सदा के लिए खारा हो गया
फिर भी हमने तुझे अपने जी से लगाया और तू है कि छलता है हमीं को
जा किसी चुल्लू भर पानी में डूब मर
सुख और दुख जीवन के दो पहिए... पहिए दो जीवन के सुख और दुख
दोनों की गठरी बना डुबकी लगाएँ जो हुआ उसे भूल जाएँ ओ रे ओ निर्माही जा तुझे माफ़ किया
गा रही हैं मल्लाहिन रो रहा है समुद्र बूढ़े मल्लाह के संग।
- रचनाकार : नीलेश रघुवंशी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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