Font by Mehr Nastaliq Web

घटना

ghatna

सागर-तट पर चल रहे हैं हम

अपने हाथों में दृढ़ता से पकड़े

एक प्राचीन संवाद के दो सिरे

—मुझे प्यार करते हो तुम?

—प्यार करता हूँ तुम्हें

भवें सिकोड़े

सारी बुद्धिमत्ता को छान डालता मैं

दोनों टेस्टामेंट्स

ज्योतिषी नबी

दार्शनिक एकांतवासी

और मठों में रहने वाले दार्शनिक

ऐसा कुछ ध्वनित होता :

—रो मत

—बहादुर बनो

—देखो सब को

तुम कहतीं अपने होंठ भींचकर

—तुम्हें उपदेशक होना चाहिए—

और खीजकर अलग चली जाती

कोई नहीं प्यार करता उपदेशकों को

कहूँ भी क्या इस छोटे-से मृतक सागर के

तट पर खड़ा

धीरे-धीरे पानी भर जाता

हमारे पदचिह्नों को मिटाता हुआ

स्रोत :
  • पुस्तक : अन्तःकरण का आयतन (पृष्ठ 61)
  • संपादक : रेनाता चेकाल्स्का और अशोक वाजपेयी
  • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक आग्नयेष्का कूच्क्येविच-फ़्राश और कुँवर नारायण)
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 2003

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY