सपने और सत्य
कोई किसी के दुश्मन नहीं होते हैं
सपनों से झूठी नींद टूटती है
दोनों जीवन में नाटक
दिखाते हैं।
सपने
झूठ का खट्टा-मीठा सत्य रूप
सत्य का मुखौटा पहनकर नाटक करते हैं।
सत्य
सपनों के हरे रंग का आकाश बनकर
झूठी डायन जैसा डरावना दिखाई देता है।
मेरा जीवन क्या है? कहाँ पर
मैं तो केवल बचूँगा मरने की अक्षमता से
जो सपने देखता हूँ वे टूट जाते हैं
जो सत्य कहता हूँ, तो आगे अप्राप्ति का बोझ
मैं अपने रास्ते में कई बार पानी की तरह
कई बार बादलों की तरह
कई बार ठोस बर्फ़ के टुकड़ों की तरह
तैरता जाता हूँ।
न खोजने की ज़रूरत है, न पाने की
न तोड़ने की ज़रूरत है, न गढ़ने की
मैं केवल पत्थर नहीं बन जाने तक
अपने आपका शत्रु हूँ
आग के झूले से दुःख दबाकर खीं-खीं हँसी के लिए।
सत्य और सपने
कोई किसी के दुश्मन नहीं होते हैं
मेरे भी नहीं।
- पुस्तक : ओड़िया भाषा की प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 168)
- रचनाकार : सौरींद्र बारीक
- प्रकाशन : यश पब्लिकेशंस
- संस्करण : 2012
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