आश्वस्त
ashwast
तुम रहो मौन और समाधिमग्न :
तुम्हारे लिए कोई
प्रलोभन नहीं है : तुमने
हवा को हथेलियों से
स्पर्श करने का मंत्र जान लिया है : पिघलता हुआ रोमांच
तुम्हारे बदन का हिस्सा बन गया है; तुम्हारे लिए कोई
संवेदन या स्पर्श, अनुभूति या जिज्ञासा, इच्छा या
आकषर्ण, तनाव या ऐषणा
पूरे आकाश को समेट कर मुट्ठी में बंद कर लेने का
मोह; कोई आयातित कल्पना नहीं है :
साँस लेना है :
आह : कैसा मधुर जीना है; जो बहाव की
तन्मयता और
गति है; जो
ध्वनि और गंध को झेलता हुआ आकर्षण है; जो
प्यास और तृप्ति के आह्वान को मुग्ध कर देता है :
कैसा आप्लावित होना है : जहाँ सभी कुछ
आँख की पुतली
में सिमट कर तिरोहित हो जाता है
बार-बार :
तुम हो मौन
और समाधिमग्न!
समय तुम्हें ढूँढ़ने नहीं आएगा : तुम रहो मौन और
समाधिमग्न : मेरे हाथ
यदि कुछ टटोलेंगे तो
वह
तुम्हारे भीतर की
प्रदक्षिणा कर मुझ तक ही पहुँचेंगे
तुम में होकर :
मेरा सुख आश्वस्त होना है : तुम रहो मौन और
समाधिमग्न !
समर्पित युगपुरुष संत परमानंद को उनसे हुई प्रथम भेंट पर उन पर लिखी कविता : उनके भीतर पैठते हुए!
- पुस्तक : सोच को दृष्टि दो (पृष्ठ 128)
- रचनाकार : मोना गुलाटी
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