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साजिशें

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सौम्या सुमन

सौम्या सुमन

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सौम्या सुमन

और अधिकसौम्या सुमन

    अचानक

    रात के तीसरे पहर

    आँख खुली उसकी,

    ख़ुद को एक गुफ़ा में पाया

    घुप्प अँधकार

    टटोले हाथ-पाँव, नाक-कान अपने

    सुरक्षित थे सभी अपनी जगह

    वह पृथ्वी का कवि

    हुआ आश्वस्त

    चाँदनी छनकर

    रही थी गुफ़ा में अब

    उसने देखा

    कुछ मकड़ियों को

    एक कोने में,

    थीं दुनिया से बेख़बर

    बेतहाशा बुन रही थीं

    जाल में बेशुमार सपने

    या षडयंत्र शायद...

    नहीं जानता वह

    उसने देखा

    कुछ चूहे,

    हद से ज़्यादा मोटे-ताज़े

    बिना आवाज़ मगन थे

    बोरियों को कुतरने में

    क़ैद थी जिनमें

    ताज़ा रोटियों की गंध

    गँध कर रही थी बेहाल

    कुछ भूरे, चितकबरे कुत्तों को

    बेजान से दिखते वो

    गुर्राते, दाँत दिखाते

    भरी बोरियों को झपटने की

    योजनाएँ बनाते

    उसने देखा

    चींटियों की कतार

    चीटियाँ...

    जो मसली जा रहीं थीं

    सदियों से

    करने लगीं थीं पलायन

    कर रहीं थीं कुछ

    पंख निकलने का इंतज़ार

    उसी पल

    मरना स्थगित किया

    झींगुरों ने भी

    और

    पृथ्वी के एक कोने में

    छिड़ चुका था महायुद्ध!

    स्रोत :
    • रचनाकार : सौम्या सुमन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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