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सफ़ेद (डर) की मौत

safed (Dar) ki maut

हिमांशु जमदग्नि

हिमांशु जमदग्नि

सफ़ेद (डर) की मौत

हिमांशु जमदग्नि

और अधिकहिमांशु जमदग्नि

    मरना निश्चित है

    पर मैं मरूँगा स्वयं के हाथों

    मैं समय का मखौल बनाने जा रहा हूँ

    आँखों के मेरियन गर्त से

    जुगुप्सा छलकाते हुए

    परमाणु बम बने ह्रदय को सुलगाते हुए

    काँपते हाथों से

    संवेदना एवं नैतिकता का गला दबाते हुए

    ये सब सफ़ेद ने कहा

    सफ़ेद संवेदना नैतिकता प्रेमी हैं

    ग़रज़ के प्रेमी

    मन में चमकती बिजलियों के पीछे गरजते हैं

    धनात्मक-ऋणात्मक के बीच महल बनाकर

    कपोत के बिस्तर पर

    रति की चादर ओढ़

    करते रहे हैं संभोग

    समय के जन्म से

    संभोग करना युगनद्ध होना है!

    महासुख के लिए!

    एक-दूसरे के पुट्ठों को दबाते हुए

    तीनों ने आपस में यही कहा था

    महासुख शाश्वत होने के लिए

    महासुख ईश्वर होने के लिए

    सफ़ेद ईश्वर हाय! रूद्र? ना काल!

    दौड़ता यही विचार

    लेकर क्रिया की तलवार

    संवेदना नैतिकता की सघन नशों में

    ईश्वर से छत के नीचे छिपते हुए

    ईश्वर के घर से चोरी करते हुए

    बच्चों के अलग-अलग मत’ थे

    मत’ एकमत हुआ संवेदना नैतिकता का

    हत्या हुई मत-कर की

    मत’ रेत रहा सफ़ेद का गला

    सफ़ेद बेजान गिरा

    खंडित हुआ अभंग गला

    संवेदना नैतिकता नयन में

    हेम-वर्ण-पुष्प खिला

    बजे मौन मृदंग

    बिना गँवाए वक़्त अदृश्य हुआ मत’

    सई साँझ युगल का कोमल चुंबन

    नव उमंग नव जीवन

    एक-दूजे को गोद में रख

    धवल शिखर पर हुए युगनद्ध

    महासुख के लिए?

    छह लाख प्रकाश वर्ष दूर

    नभोमय भूमि पर

    घुँघरू बाँध

    रहा नाच

    गा रहा नेह साँझ तले

    अपनी कली अपनी राग

    गायन थमा नृत्य रूका

    नयन श्वेत किए

    सफ़ेद ने कहा

    सफ़ेद शाश्वत है

    स्रोत :
    • रचनाकार : हिमांशु जमदग्नि
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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