सबके हिस्से नहीं आती कश्ती, न सावन, न बारिश का पानी
sabke hisse nahin aati kashti, na sawan, na barish ka pani
आसित आदित्य
Aasit Aditya
सबके हिस्से नहीं आती कश्ती, न सावन, न बारिश का पानी
sabke hisse nahin aati kashti, na sawan, na barish ka pani
Aasit Aditya
आसित आदित्य
और अधिकआसित आदित्य
सनकी पुरातत्त्वविद् की भाँति
उठाता है कुदाल
खोद डालता है छाती
प्रकट होते हैं
स्मृतियों के खंडहर
सपनों के लय पर थिरकती
नर्तकी की टूटी मूर्ति
फ़रेब के टकसाल में ढले
वादों के सिक्के खोटे
रात, चाँद, बादल, ढीठ ख़याल...
नीचे—बहुत नीचे
दबा क्रूर हँसी और निर्मम उपेक्षाओं से
एक बच्चा लिए गाल पर चाटे का निशान
इतना अकेला कि करता टिड्डों-चींटों से दोस्ती
इतना नादान कि जननांग पर उगते बालों से परेशान
वह जानता है
पहचानता है उसे
मगर घर नहीं लाता
नहीं ही लाता
घर भोले लोगों के लिए
नहीं वाज़िब स्थान
- रचनाकार : आसित आदित्य
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
- संस्करण : 1982
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