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सभी फूलों को हवाओं ने जूठा कर दिया था प्रिये!

sabhi phulon ko hawaon ne jutha kar diya tha priye!

पराग पावन

पराग पावन

सभी फूलों को हवाओं ने जूठा कर दिया था प्रिये!

पराग पावन

और अधिकपराग पावन

    सभी फूलों को हवाओं ने जूठा कर दिया था प्रिये!

    तो मैं ख़ाली हाथ आया हूँ

    मैंने तुम्हारे लिए तुमसे एक कविता का वादा किया था

    पर उसे पूरा करने की असमर्थता काई की तरह फैलती जा रही है

    शब्दों के अर्थों ने मेरे वक़्त को धोखा दिया है

    मैंने जिसे देश समझकर प्यार किया वह विचारों का क़त्लगाह था

    मैंने जिसे जूता कहा वह मेरे राहों का जासूस था

    मैंने जिसे छत माना वह धूप और बारिश की दलाल निकली अंत में

    कोई भी चीज़ अपनी जगह पर सलामत नहीं है

    तितली को तितली कहने में ख़तरा है

    आग को आश्वस्त होकर आग नहीं कहा जा सकता

    यह ऐसा समय है प्रिये!

    चाँद जुगनू के घर दस्तख़त करने जाता है

    और नदियाँ कुओं के लिए महाकाव्य लिखने में व्यस्त हैं

    सोहर मर्सिये से यारी करना चाहता है

    और ओस धूप की दयालुता पर फ़िदा हुई जाती है

    यह ऐसा समय है प्रिये!

    तुमने जब कहा कि इधर ब्रह्मपुत्र के पाट बढ़ आए हैं

    इधर ब्रह्मपुत्र अधिक हत्यारिन हुई है

    मैंने कहा इसे अभिधा में समझने की भूल मत करना

    तुमने जिस मासूमियत से एक मोर से मोरपंख माँगा

    मेरी आत्मा फफक कर रो पड़ी

    मैं आजकल हर सुंदर और कोमल चीज़ को देखकर डरता हूँ

    यह ऐसा समय है प्रिये!

    सभी फूलों को हवाओं ने जूठा कर दिया था

    यदि वे साबुत भी होते तो फूलों पर उनका हक़ है

    हमारे पसीने और लहू के जाये फूलों पर भी उनका ही हक़ है

    हर शाख़ पर, हर डाल पर

    हर गेरुए पर, हर लाल पर

    हर जड़ और ज़मीन पर

    तमाशे पर, तमाशबीन पर

    उनका ही हक़ है

    एक कवि ने तीन दशक पहले पूछा था

    मिट्टी, कुआँ, तालाब, देश में-से कुछ हमारा भी है?

    तब से लेकर आज तक सारे कवि ख़ामोश हैं

    मैं अपने पुरखों की तरह युगों से अभिशप्त हूँ ख़ाली हाथ आने के लिए

    तो ख़ाली हाथ आया हूँ

    सभी फूलों को हवाओं ने जूठा कर दिया था प्रिये!

    स्रोत :
    • रचनाकार : पराग पावन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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