बहुत पहले की बात है
जब रास्ते
चौराहों का इंतज़ार किया करते थे
शहर और क़स्बे
सिर्फ़ नदियों का नहीं
चौराहों का भी ढूँढ़ते थे साथ
चौराहे बताते
एक ही रास्ता नहीं है
जीने का
और जाने का
विकल्पे भरे होते चौराहे
और संभावनाओं से भी
चौराहे पर टकराते थे विचार
चौराहे पर बतियाती थीं भाषाएँ
चौराहे पर लेन-देन किया करते
दूर-दराज़ के स्वाद
ख़ूब हलचल होती चौराहे पर
ठहराव की
टकराने का अवसर देते चौराहे
आँखों को
विचारों को
सालों से बिछड़े यारों को
कि तभी विकसित लोगों को हुआ इल्हाम
गति है सबसे बड़ा मूल्य
और ठहराव
पिछड़ापन
जीवन से कम होने लगे चौराहे
टकराव से बचाने को
बनाए गए बाईपास
और फ़्लाईओवर
कि पहला कहीं मिल न जाएँ दूसरे से
सो दूसरे के सर के ऊपर से निकल जाता पहला
या कभी दूसरा
पहले के पैरों के नीचे का रास्ता पकड़ लेता।
अचानक बढ़ने लगी अंडरपासों-ओवरब्रिजों की संख्या
सड़क से कहीं ज़्यादा
दिमाग़ में
संबंध में
दिलों में
कैसे बताऊँ
कि नाक की सीध में नहीं चला करते इंसान
कि चौराहों को टाप जाने के
होते हैं ख़तरे
कहाँ गए मुक्तिबोध
जो करते थे
क़दम क़दम पर चौराहे मिलने की बात
कैसे समझाऊँ
इंच-इंच पर चाहिए चौराहे
फ़्लाईओवर से उड़ते हुए
नहीं छूटती सिर्फ़ ज़मीन
हम भी छूटते जाते हैं
थोड़ा-थोड़ा।
- रचनाकार : प्रमोद कुमार तिवारी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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