रास्ता
rasta
रास्ता मैंने नहीं बनाया है
मेरे बाप,
बाप के बाप ने भी नहीं
इस रास्ते को बनाने वालों से
मेरी कोई रिश्तेदारी नहीं
फिर भी इस रास्ते पर
मेरा रोज़ का आना जाना रहता है
मैं इस रास्ते को अपना रास्ता कहती हूँ
ऐसे ही तमाम चीज़ों से मेरा कोई नाता नहीं है
किसी दोस्त के कंधे पर हाथ रखने से डरती हूँ
क्या उसके कंधे के टिशू मेरी हथेलियों के टिशू से मैच करेंगे
एक खोमचे से चनाजोर गर्म ख़रीदते हुए सोचती हूँ
पता नहीं हिंदू है या मुसलमान
कोई सिंदूरी लड़की अपने काले बाल झटकती है
मुझे लगता है समुद्र मे ज्वार भाटा इन्हीं कारणों से आता है
मेरा नाम पता नहीं कितना मेरा है
मेरे तमाम रिश्तों में पता नहीं कितनी मैं हूँ
मेरे कई एक सवाल छूटते ही मेरे ही गाल पीट जाते हैं
मैं किसी की ओर उँगली उठाऊँ
सब उँगलियाँ मेरी ओर लौट आती हैं
कभी कोई पल पाल्थी मार कर बैठ जाता है
मैं सोचती हूँ यह मेरा समय है
कुछ हठीले पल दुरदुराने से भी नहीं जाते
कुछ लोग प्रेम का अर्थ नहीं जानते
कई बेतुकी बातें एक तुक में सही बैठ जाती हैं
एक सही बात कहने का किसी को सलीक़ा नहीं आता
नौ दिन चलने वाले अगर अढ़ाई कोस भी पहुँच जाएँ
तो इसे उपलब्धि मानना चाहिए
पर ऐसा होता नहीं
तमाम बार किसी मोड़ किसी दृश्य में अटक जाती हूँ
तनिक देर आँख बंद करूँ
तो ढेरो गुलमोहर बारूद की तरह फट पड़ते है
तमाम बार माधुरी के फूल मेरे पैर पकड़ लेते हैं
और मैं किसी और के सपने में छपाक से कूद पड़ती हूँ
क्षमा कि मेरा नाम मेरा नहीं है
ये रास्ता भी मेरा नहीं
मैं इस रास्ते पर रोज़ आती जाती हूँ
इस नाते से इस रास्ते को अपना रास्ता कहती हूँ
- रचनाकार : प्रज्ञा सिंह
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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