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रंगकवि से बतकही

rangakawi se batakhi

राजेश कमल

राजेश कमल

रंगकवि से बतकही

राजेश कमल

और अधिकराजेश कमल

     

    मार्च

    अक्टूबर की चाँदनी,
    नवंबर की सुस्ती,
    दिसंबर की धूप…
    जनवरी में मुकम्मल प्रेम पैदा करती है
    फ़रवरी ख़ुश्क करती है जिसे
    शायद इसलिए ही मार्च में लड़कियाँ भागती हैं,
    है न मेरे महबूब कवि?

    रावणराज

    उम्र के आख़िरी पड़ाव में
    जब भूपेन भटक गए
    तो बेहद ग़ुस्सा आया

    ग़ुस्सा तो तब भी आया
    जब युद्ध सरदारों से सवाल पूछने वाला कवि
    भटक गया

    रावण के संहार के लिए प्रख्यात राम
    लव और कुश का होकर रह गया

    कई मठाधीश बेनक़ाब हुए
    कई मठ धराशायी
    कई दिनों तक कोफ़्त हुई
    फिर समझ आया
    जब काल नायकविहीन है
    तो रावणराज आ ही गया तो क्या?

    वृद्ध कवि

    उसका पहला और आख़िरी परिचय यही है—
    वह कवि है
    यह और बात है कि उसने दशकों से नहीं लिखीं कविताएँ

    कवि भूतपूर्व होता नहीं
    इसलिए
    अभूतपूर्व है वह
    रंगकवि—
    मूतता
    आजकल अपने ही काव्य पर…

    पोलिटिकली करेक्ट

    अश्विनी चौबे के साथ तस्वीरें खिंचवाते हो,
    गिरिराज सिंह के साथ मीठी-मीठी बातें करते हो,
    नीतीश कुमार को मित्र बताते हो
    और चारू मजूमदार को पोलिटिकली इन्करेक्ट
    पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?

    स्रोत :
    • रचनाकार : राजेश कमल
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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