रात ज़्यादा साँवली थी या मन
raat zyada sanvli thi ya man
रात ज़्यादा साँवली थी या मन
कुछ ठीक से नहीं कहा जा सकता
पलाश और सेमल के दहकते लाल रंग
रात के घनघोर अँधेरे में
अपने नामों के मतलब चूकते जाने के गवाह बन
शर्मिंदगी से खड़े थे
कुछ भाषाविदों के अनुसार
इस उत्तरआधुनिक समय में
पलाश और सेमल का मतलब
व्यवस्था और सरकार भी हो सकता है
बशर्तें ये शब्द स्टार एंकरों के हवाले न किए जाएँ
वे कह सकते हैं :
“सेमल और पलाश
पहली बार! जी हाँ पहली बार!
दहक रहे हैं इतने
राजा के तप से”
शुक्र है सड़कों को टीवी देखने की आदत नहीं
दिन भर बिलबोर्ड के चटख रंगों से
चमकती राजधानी लखनऊ की वीवीआईपी सड़क
'लाश के वास्ते' वाली गाड़ियों
और एम्बुलेंस के चक्कों से नज़रें चुराती
बेबसी का कोलतार लपेटे ख़ामोश हैं
अपनों को हारकर लौटते परिजनों के लिए
सड़क ने रातोंरात ख़ुद पर खुदाई कर
लिख दिए हैं
नमन! विनम्र श्रद्धांजलि या फिर आरआईपी जैसे कुछ हर्फ़
इनके नीचे
शहरवासियों को सिर्फ़ नाम जोड़ने थे।
- रचनाकार : प्रीति चौधरी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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