रात गए सड़कों पर अक्सर एक न एक आदमी ऐसा ज़रूर मिल जाता है
जो अपने घर का रास्ता भूल गया होता है
कभी-कभी कोई ऐसा भी होता है जो घर का रास्ता तो जानता है
पर अपने घर जाना नहीं चाहता
एक बूढ़ा मुझे अक्सर रास्ते में मिल जाता है
कहता है कि उसके लड़कों ने उसे घर से निकाल दिया है।
कि उसने पिछले तीन दिन से कुछ नहीं खाया है।
लड़कों के बारे में बताते हुए वह अक्सर रुआँसा हो जाता है
और अपनी फटी हुई क़मीज़ को उघाड़कर
मार के निशान दिखाने लगता है
कहता है उसने बचपन में भी अपने बच्चों पर
कभी हाथ नहीं उठाया
लेकिन उसके बच्चे उसे हर दिन पीटते हैं
कहता है कि वह अब कभी लौटकर
अपने घर नहीं जाएगा
लेकिन थोड़ी देर बाद ही उसे लगता है कि उसने यूँ ही
ग़ुस्से में बोल दिया था यह वाक़्य
अपमान पर हावी होने लगती एक अनिश्चितता
एक भय अचानक घिरने लगता है मन में
थोड़ी देर बाद वह अपने आप से ही हार जाता है
दूसरे ही पल वह कहता है
कि अब इस उम्र में वह कहाँ जा सकता है
वह चाहता है, मैं उसके लड़कों को जाकर समझाऊँ
कि लड़के उसे वापस घर में आ जाने दें
कि वह चुपचाप एक कोने में पड़ा रहेगा
कि वह बाज़ार के छोटे-मोटे काम भी कर दिया करेगा
बच्चों को स्कूल से लाने ले जाने का काम तो
वह करता ही रहा है कई साल से
वह चुप हो जाता है थक कर बैठ जाता है
जैसे ही लगता है कि उसकी बात पूरी हो चुकी है
वह फिर बोल पड़ता है कहता है : मैं बूढ़ा हो गया हूँ
कभी-कभी चिड़चिड़ा जाता हूँ
सारी ग़लती लड़कों की ही नहीं है
वे मन के इतने बुरे भी नहीं हैं
हालात ही इतने बुरे हैं, उनका भी हाथ तंग रहता है
उनके छोटे-छोटे बच्चे हैं और वो मुझे बहुत प्यार करते हैं
मेरा तो पूरा समय उन्हीं के साथ बीत जाता है
फिर अचानक वह खड़ा हो जाता है कहता है
हो सकता है वे मुझे ढूँढ़ रहे हों
उनमें से कोई न कोई थोड़ी देर में ही मुझे लिवाने आ जाएगा
आप अगर मेरे लड़कों में से किसी को जानते हों
तो उससे कुछ मत कहिएगा
सब ठीक हो जाएगा...
सब ठीक हो जाएगा...
बुदबुदाते हुए वह आगे चल देता है
रात किसी का घर नहीं होती
किसी बेघर के लिए
किसी घर से निकाल दिए गए बूढ़े के लिए
मेरे जैसे आवारा के लए
रात किसी का घर नहीं होती
उसके अँधेरे में आँसू तो छिप सकते हैं कुछ देर
लेकिन सिर छिपाने की जगह वह नहीं देती
मैं उस बूढ़े से पूछना चाहता हूँ
पर पूछ नहीं पाता
कि जिस तरफ़ वह जा रहा है
क्या उस तरफ़ उसका घर है?
- पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 116)
- रचनाकार : राजेश जोशी
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 2015
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