रात-भर न सो पाने के बाद
raat bhar na so pane ke baad
शिथिल पड़ जाता है पूरा शरीर
प्रिय लगता है वह, न अपना न पराया-सा।
धीमी धमनियों में अब भी खनकते हैं तीर,
देवदूतों की तरह हम मुस्कुरा देते हैं
लोगों को देखकर।
रात-भर न सो पाने के बाद
एक-से लगते हैं मित्र और दुश्मन,
अचानक सुनी ध्वनि में पूरा होता है इंद्रधनुष
और पाले में से फ़्लोरेंस की आती है महक।
और अधिक चमकने लगते हैं कोमल होठ
और अधिक सुनहली दिखती है
आँखों के पास झुकी छाया।
यह उजला मुख आलोकित किया है रात ने
और आँखों में से झाँक रहा है रात का अंधकार।
- पुस्तक : इस बेसहारा वक़्त में (पृष्ठ 86)
- रचनाकार : मारीना त्स्वेतायेवा
- प्रकाशन : प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली
- संस्करण : 2013
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