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पुण्यभूमि यह

punybhumi ye

सियारामशरण गुप्त

सियारामशरण गुप्त

पुण्यभूमि यह

सियारामशरण गुप्त

और अधिकसियारामशरण गुप्त

    पुण्यभूमि यह हमें सर्वदा है सुखकारी;

    माता के सम मातृभूमि है यही हमारी।

    हमको ही क्या, सभी जगत को है यह प्यारी;

    इतनी गुरुता और कहीं क्या गई निहारी?

    यह वसुधा सर्वोत्कृष्ट है,

    क्यों कहें फिर हम यही—

    जय-जय भारतवासी कृती,

    जय-जय-जय भारतमही॥

    अब तक जो कुछ विश्व बीच हमने पाया है,

    वह इस प्यारी पुण्य-भूमि की ही माया है।

    हममें ओत-प्रोत प्रेम इसका छाया है!

    हमने यह सब भाँति जगत को बतलाया है।

    हम इसके सुत हमको निरख,

    कह उठते हैं सब यही—

    जय-जय भारतवासी कृती,

    जय-जय-जय भारतमही॥

    इसी भूमि पर राम कृष्ण ने जन्म लिया है,

    ऋषि-मुनियों ने प्रथम ज्ञान-विस्तार किया है।

    है क्या कोई देश यहाँ से जो जिया है?

    सदुपदेश-पीयूष सभी ने यहाँ पिया है।

    नर क्या, इसको अवलोक कर

    कहते हैं सुर भी यही—

    जय-जय भारतवासी कृती,

    जय-जय-जय भारतमही॥

    है हम सबकी मातृभूमि, भयहारिणि माता,

    बस तेरा ही रूप हमें जी से है भाता।

    तेरा-सा सौंदर्य सृष्टि में दृष्टि आता;

    तेरी शोभा देख स्वर्ग भी है सकुचाता।

    हम जिधर कान देते उधर

    सुन पड़ता हमको यही—

    जय-जय भारतवासी कृती,

    जय-जय-जय भारतमही॥

    धरणी, सागर, शैल जहाँ तक गये निहारे,

    हैं तेरे ही यशोगान से गुंजित सारे।

    सभी देश हैं अतुलनीय तेरा ऋण धारे,

    कीर्ति-धवल कर गये तुझे हैं पितर हमारे।

    सब सुनें, गिरा यह गूँजकर

    है अनंत में छा रही;—

    जय-जय भारतवासी कृती,

    जय-जय-जय भारतमही॥

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