तब एक विद्वान ने पूछा : 'वार्तालाप' का क्या महत्व है?
उत्तर मिला :
तुम्हारी वाणी तभी मुखर होती है जब विचार-शृंखला से उसका साम्य टूट जाता है।
और जब तुम अपने हृदय के एकांत में वास नहीं करते तब तुम होंठों पर शब्द बनकर
रहते हो और तब तुम्हारे स्वर सस्ते मनोरंजन के उपकरण मात्र बनकर रह जाते हैं।
और तब ऐसे स्वर-विनिमय में विचारों का गला घुट जाता है।
क्योंकि विचारों का पक्षी रिक्त आकाश में उड़ने वाला है, स्वरों के पिंजरे में वह अपने
पंख तो खोल देता है, पर उड़ नहीं सकता।
तुममें ऐसे भी हैं, जो अकेलेपन के भय से बचने को वाचाल की शरण खोजते हैं।
एकांत की निःशब्दता उनकी आँखों के समक्ष उनके ही व्यक्तित्व का वास्तविक
स्वरूप प्रकट कर देती है, जो उन्हें अभीष्ट नहीं होता।
तुममें कुछ ऐसे भी हैं, जो बोलते हैं और ऐसे सत्य का अनावरण कर जाते हैं, जिससे
वे स्वयं परिचित नहीं होते।
कुछ ऐसे भी हैं, जो अपने अंतर में सत्य को छिपाए रखते हैं, शब्दों में नहीं कहते।
इन्हीं आत्मा को अनिर्वचनीय कहने वाले हृदयों में आत्मा मौन लय-ताल के साथ
रहती है।
जब तुम राह में या हाट में अपने मित्र से मिलो, तो तुम्हारी आत्मा तुम्हारे होंठों को हिलाए
और वाणी को निर्देशित करे।
ताकि तुम्हारी आत्मा की आवाज़ उसकी आत्मा के कानों तक पहुँच जाए।
क्योंकि उसकी अंतरात्मा ही तुम्हारे हृदय के सत्य को ग्रहण करेंगी ।
जैसे सुरा का रंग भूल जाने और सुरा-पात्र के टूट जाने पर भी उसके स्वाद की स्मृति
बनी रहती है।
- पुस्तक : मसीहा
- रचनाकार : ख़लील जिब्रान
- प्रकाशन : राजपाल एंड संस
- संस्करण : 2016
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