एक अन्य मनुष्य ने प्रश्न किया: आत्मज्ञान क्या है?
अलमुस्तफ़ा ने उत्तर दिया:
तुम्हारा मौन हृदय दिन और रात के सब रहस्य जानता है। लेकिन तुम्हारे कान उस
ज्ञान की अभिश्रुति को व्याकुल ही रहते हैं।
तुम उसी ज्ञान को, जो विचारों के रूप में तुम्हारा हृदय जानता है, शब्दों में सुनना
चाहते हो।
तुम अपने स्वप्नों की मूर्त काया का स्पर्श करना चाहते हो, अपनी अँगुलियों से।
यही अभीष्ट भी है।
तुम्हारे आत्मानिहित निर्भर कूप के लिए अनिवार्य है कि वह बाहर फूटकर
समुद्रगामी बने।
तभी तुम्हारी अथाह गहराई का ज्ञान-कोष चक्षुगत होगा। परंतु इस ज्ञानकोष को
कभी तराज़ू पर न तोलना।
और न कभी इस अतल आत्मज्ञान की गहनता को मापदंड से मापने का यत्न करना।
क्योंकि आत्मा अथाह और अनंत सागर के समान है।
कभी यह न कहना कि 'मैंने समस्त सत्य पा लिया है' बल्कि कहना 'मैंने एक सत्य' पाया
है।'
यह न कहना कि 'मैंने आत्मा का मार्ग जान लिया है। बल्कि यह कि 'अपने मार्ग पर
चलते हुए आत्मा से भेंट की है।'
क्योंकि आत्मा प्रत्येक मार्ग पर अभियान करती है।
वह किन्हीं बंधी रेखाओं पर नहीं चलती, न ही वह सरू वृक्ष की तरह आसमान को
भेदती हुई ऊँचा उठती है।
आत्मा अपने को स्वयं अनावृत करती है—जैसे अंसख्य पंखों वाला कमल।
- पुस्तक : मसीहा
- रचनाकार : ख़लील जिब्रान
- प्रकाशन : राजपाल एंड संस
- संस्करण : 2016
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