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प्रेम के हिस्से में वनवास है

prem ke hisse mein wanwas hai

अनुराधा ओस

अनुराधा ओस

प्रेम के हिस्से में वनवास है

अनुराधा ओस

और अधिकअनुराधा ओस

    ओस की कुछ बूँदें अभी बाक़ी है

    नरम-नरम पत्तियों पर

    कुछ देर में लोप हो जएगी

    रवि की हल्की आँच से

    प्रेम और ओस के हिस्से में

    लंबा वनवास लिख दिया है रचने वाले ने

    तुमने अच्छा ही किया

    तुम चले गए

    तुमने पलट कर भी देखा

    हज़ारों नदियाँ निकल चुकी है

    सफ़र तय करने

    नदियाँ अब आँखों में नहीं रहती

    अब वो निकल पड़ी हैं

    शिलाओं से प्रेम करने

    प्रेम को एक बार फिर वनवास मिला

    लेकिन उन हज़ारों शब्दों की कितनी

    पांडुलिपि बनाऊँ?

    प्रतीक्षा की लिपि सीखना है

    मन के कोरे भोजपत्र पर लिखने ले लिए

    वृक्ष से अलग हुई पत्तियों-सी

    यह जुड़ीं है

    भूमि के अंदर कहीं गहरी मिट्टी में

    जो शब्द प्रेम के मध्य उपजे थे

    हमारे बीच

    उन्हें किन नदियों में प्रवाहित करूँ?

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुराधा ओस
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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