मेरिलिन मनरो के लिए प्रार्थना
merilin manro ke liye pararthna
परमेश्वर
शरण में ले लो इस लड़की को जो मेरिलिन मनरो के नाम से
जानी जाती है दुनिया में
गो यह न था उसका नाम
(लेकिन तुम तो जानते हो उसका सही नाम, नौ बरस की उमर में बलात्कार
की शिकार हुई अनाथ बाला का
दुकान में काम करने वाली उस लड़की का जिसने आत्महत्या की कोशिश की
सोलहवें बरस में)
जो अब तुम्हारे सामने बिना मेकप आ जाती है
प्रेस-एजेंट के बिना
अपने फ़ोटोग्राफ़र के बिना, बिना ऑटोग्राफ़ देते
बाह्य अंतरिक्ष के अँधकार का सामना करते अंतरिक्ष यात्री के मानिंद
जब वह बच्ची थी तब सपने में देखा था उसने कि वह नंगी खड़ी है चर्च में
(टाइम्स के अनुसार)
साष्टांग दंडवत करते, धरती पे सिर टेके अरबों लोगों के सामने खड़ी
उसे चलना पड़ता था अपने पंजों पे, सिर बचाने के लिए
तुम तो बेहतर जानते हो हमारे सपनों को, मनोविज्ञानी चिकित्सक से
चर्च, घर, या गुफा सब प्रतिनिधित्व करते है गर्भ की सुरक्षा का
लेकिन उससे कुछ ज़्यादा भी...
सिर प्रशंसक हैं, यह तो साफ़ है (वह
समूह सिरों का परदे की निचली कोर के अँधेरे में)
लेकिन मंदिर 'ट्वेन्टियथ सेंचुरी फ़ॉक्स' का स्टूडियो नहीं है
मंदिर सोने और संगेमर्मर का, मंदिर है उसके तन का
जिसमें कोड़ा लिए खड़ा है मर्दानगी का सूर्य
हँकालता 'ट्वेन्टियथ सेंचुरी फ़ॉक्स' के दलालों को जिसने
बना दिया तेरे घर को अड्डा चोरों का
परमेश्वर,
रेडियोएक्टिविटी और पाप से दूषित इस दुनिया में
मुझे भरोसा है कि आप दुकान में काम करती एक लड़की को नहीं कोसेंगे
जो (किसी दूसरी ऐसी लड़की की तरह) सपना देखती थी 'स्टार' बनने का
उसका सपना हो गया सच (टेक्नीकलर सच्चाई)
उसने तो बस हमारी 'स्क्रिप्ट' के अनुसार किया
हमारी ज़िंदगियों-जैसा, लेकिन वो अर्थहीन था
क्षमा करो प्रभु उसको और क्षमा करो हम सबको
हमारी इस 20वीं सदी के लिए
और उस विराट 'प्रोडक्शन' के लिए जिसके भागीदार हैं हम सब
वह भूखी थी प्यार की और हमने दीं उसे नींद की गोलियाँ
संत न हो पाने का अपना शोक मनाने के लिए
उसने भेजा उसे मनोविश्लेषक के पास
याद करो प्रभु कैमरे के प्रति उसका निरंतर बढ़ता भय
और घृणा 'मेकप' के लिए (बावजूद उसकी हर सीन के लिए
नया 'मेकप' करने की ज़िद के) और कैसे बढ़ा वह आतंक
और कैसे बढ़ी उसकी आदत स्टूडियो में देर से आने की
किसी और मनिहारिन की तरह
सपने देखती थी वह तारिका' बनने के
उसकी ज़िंदगी वैसी ही अयथार्थ थी जैसे कोई सपना
जिसे बाँचता है विश्लेषक और दबा देता है फ़ाइल में
उसके प्रेम-चुंबन थे मूँदी आँखों वाले
जो आँखें खुलने पर
दिखे कि खेले गए थे वे 'स्पॉटलाइटों' तले जो
बुझाई जा चुकी हैं
और कमरे की दोनों दीवारें (वह एक 'सेट' था) हटाई जा रही हैं
डायरेक्टर अपनी डायरी लिए जा रहा है दूर
और 'दृश्य' बंद किया जा रहा है ठीक-ठाक
या जैसे किसी नौका पर भ्रमण, चुंबन सिंगापुर में, नाच रियो में,
विंडसर के ड्यूक और डचेस की बखरी का स्वागत-समारोह
देखा गया किसी सस्ते कमरे के ऊबड़खाबड़ उदास माहौल में
फ़िल्म अंतिम चुंबन के बिना ख़त्म हो गई
उन्हें मिली वह मरी, फ़ोन हाथ में लिए,
जासूस पता नहीं लगा सके कभी उसका जिसे करना चाहती थी फ़ोन वो
कुछ ऐसा हुआ
जैसे किसी ने नंबर मिलाया हो अपने एकमात्र दोस्त का
और वहाँ से—टेप की हुई आवाज़ आई हो—'रॉंग नंबर',
या जैसे गुंडों के हमलों से घायल, कोई पहुँचे, काट दिए गए फ़ोन तक,
परमेश्वर, चाहे जो कोई हो
जिससे वह करना चाहती थी बात
लेकिन नहीं की (और शायद वह कोई न था
या कोई ऐसा जिसका नाम न था लॉस एंजलस डायरेक्टरी में)
परमेश्वर, तुम उठा लो वह टेलीफ़ोन
- पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 220)
- संपादक : अशोक वाजपेयी
- रचनाकार : अर्नेस्तो कार्देनाल
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
- संस्करण : 1989
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