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तुम होते हो तो

tum hote ho to

दीप्ति कुशवाह

दीप्ति कुशवाह

तुम होते हो तो

दीप्ति कुशवाह

और अधिकदीप्ति कुशवाह

    तुम होते हो तो

    डाली पर फूल टिकता है अधिक दिन

    पत्तियों में बढ़ आता है क्लोरोफिल

    चौके में देर तक चलता है नल

    और सिकुड़ जाती हैं दिक़्क़तें

    कमरे में मिलते हैं

    तसल्लियों के ताज़ा गुच्छे

    ज़िंदगी में खुल जाते हैं

    नर्म धूप के रास्ते

    आईना रहता है खिला-खिला,

    अपने खालीपन को झटक कर

    और कोने पर चिपकी बिंदी

    बदलती रहती है अपना रंगरूप

    तुम होते हो पास

    तो रात के बटुए में पाती हूँ

    नोन डूबे अतिरिक्त क्षण

    मन की स्लेट पर शेष नहीं रहते

    शिकायतों के कण

    लबालब नदियाँ जाती हैं

    मेरे सिरहाने तक

    जब तुम पास होते हो

    चाँद टिका रहता है खिड़की की सलाख से

    पोर-पोर बिहाग की धुन बजती है

    सुनो,

    तुम्हारी अनुपस्थिति बड़ी रिक्तता रचती है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : दीप्ति कुशवाह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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