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दो पंक्तियों के बीच

do panktiyon ke beech

राजेश जोशी

राजेश जोशी

दो पंक्तियों के बीच

राजेश जोशी

और अधिकराजेश जोशी

    कविता की दो पंक्तियों के बीच मैं वह जगह हूँ

    जो सूनी-सूनी-सी दिखती है हमेशा

    यहीं कवि को अदृश्य परछाईं घूमती रहती है अक्सर

    मैं कवि के ब्रह्मांड की एक गुप्त आकाशगंगा हूँ

    शब्द यहाँ आने से अक्सर आँख चुराते हैं

    हड़बड़ी में छूट गई कोई सहायक क्रिया या कोई शब्द

    कभी-कभार उठंगा-सा आकर बैठ जाता है किसी किनारे पर

    अनुस्वार और कुछ मात्राएँ झाँकती रहती हैं मेरी परिधियों से

    शब्दों से छन-छनकर गिरती रहती हैं यहाँ कई ध्वनियाँ

    कभी-कभी तो शब्दों के कुछ ऐसे अर्थ भटकते हुए

    चले आते हैं यहाँ

    बिगड़ैल बच्चों की तरह जो भाग गए थे बहुत पहले

    अपना घर छोड़कर

    जैसी दिखती हूँ

    उतनी अकंपित उतनी निर्विकार-सी जगह नहीं हूँ

    एक चुप हूँ जो जाती है बातचीत के बीच अचानक

    तैरते रहते हैं जिसमें बातों के छूटे हुए टुकड़े

    कई चोर गलियाँ निकलती हैं मेरी गलियों से

    जो ले जा सकती हैं

    सबसे छिपाकर रखी कवि की एक अज्ञात दुनिया तक

    बेहद के इस अरण्य में कुलाँचें मारती रहती हैं

    कितनी ही अनजान-सी छवियाँ

    शब्दों की ऊँची आड़ के बीच मैं एक खुला आसमान हूँ

    कवि के मंसूबों के उक़ाब जहाँ भरते हैं लंबी उड़ान

    अदृश्य की आड़ के पीछे छिपी है यहाँ कुछ ऐसी सुरंगें

    जो अपने गुप्त रास्तों से

    शब्दों की जन्म-कथा तक ले जाती हैं

    यहाँ आने से पहले अपने जूते बाहर उतार कर आना

    कि तुम्हारे पैरों की कोई आवाज़ हो

    एक ज़रा-सी बाहरी आवाज़ नष्ट कर देगी

    मेरे पूरे जादुई तिलिस्म को!

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 87)
    • रचनाकार : राजेश जोशी
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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