बहला सके न बहुत समय तक
प्यार, ख्याति के भ्रम औ' आशा,
ये यौवन के रंग लुटे यों
जैसा सपना, भोर-कुहासा।
किंतु निठुर-निर्मम सत्ता के
जुए तले भी हृदय धधकता,
उत्कट चाह, लिए विह्वलता
वह आह्वान राष्ट्र का सुनता।
बेचैनी से राह देखते
आज़ादी के पावन क्षण की,
जैसे करे प्रतीक्षा प्रेमी
प्रिय से निश्चित मधुर मिलन की।
हममें जब तक मुक्ति-ज्वाल है
मन में गौरव का स्पंदन है,
मेरे मित्र, कहें अर्पित सब
राष्ट्र, तुम्हें, जीवन, तन-मन है!
साथी, तुम विश्वास करो यह
चमक उठेगा सुखद सितारा,
रूस नींद से जागेगा ही,
खंडहर पर तानाशाही के
लोग लिखेंगे नाम हमारा।
- पुस्तक : अलेक्सान्द्र पूश्किन चुनी हुई रचनाएँ (खंड-1) (पृष्ठ 9)
- रचनाकार : अलेक्सान्द्र पूश्किन
- प्रकाशन : प्रगति प्रकाशन, मास्को
- संस्करण : 1982
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