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रब्ब-रब्ब मत कहो

rabb rabb mat kaho

हरभजन सिंह कोमल

हरभजन सिंह कोमल

रब्ब-रब्ब मत कहो

हरभजन सिंह कोमल

और अधिकहरभजन सिंह कोमल

    रब्ब-रब्ब मत कहो

    मुझे

    रब्ब-रब्ब मत कहो।

    रब्ब कहे मुझको लगता है

    जीवित मेरे मन में ही

    घोंपे कोई सलाख़

    मुझको रब्ब-रब्ब मत कहो।

    उस रब्ब की कोई सूरत

    कोई सीरत

    कोई धर्म-आचार

    वह तो निराकार है लेकिन

    मेरा एक आकार।

    मेरी गर्दन पर तो सिर है

    कान, चेहरा, और नाक

    दोनों आँखें देख रही हैं

    चारों ओर निश्चिंत।

    रब्ब की तरह

    एक नज़र, अंधी नज़रों से

    देखूँ हर चीज़

    भले-बुरे के अंदर मुझको

    करनी आए तमीज़

    रब्ब नहीं कि सोच सकूँ

    पसरा क्या चहुँ-ओर

    हर बंदे की छीना-झपटी

    झूठ घोर अँधेर।

    मेरे नाक की शक्ति सूँघे

    और हाथों की लकीर

    कर सकते हैं टेढ़े रास्ते

    ऊँच-नीच हर तीर।

    और मेरा आँखों का जोड़ा

    प्रतिदिन देखे

    माल लूटकर खाएँ और

    किलकारी मारे लोग।

    और दूसरी तरफ़

    लंगर घर के गेट से बाहर

    पंक्तिबद्ध

    जूठ के अभिलाषी

    राह निहारें लोग।

    मेरा सब अस्तित्व सूँघता

    ऊँची चोटी से आती

    सुच्चे घी की गंध

    और शमशान किनारे उभरा

    झुग्गी में

    आए कैसे दुर्गंध।

    रब्ब-रब्ब कहो

    मुझे रब्ब-रब्ब कहो।

    मैं इतना अंधा-बहरा

    कि मैं जान सकूँ

    हँसी-शोक का अंतर

    क्या मुझको यह समझ आए

    किस छाती में चाव मेरे

    और किसमें है इक टीस

    मुझको रब्ब-रब्ब मत कहो

    मेरे नीचे चरण नहीं हैं, मेरे पास हैं पाँव

    मैं अपने पाँवों पर चरण-वंदना सोच-सोचकर

    जीवित आठों पहर।

    मेरे पास छाती मेरी है

    और बाँहों का घेरा

    मैं तो बाहुपाश का आशिक़

    कि अपनी साँसों में

    रहे तेरा और मेरा।

    रब्ब-रब्ब कहो मुझे

    रब्ब-रब्ब मत कहो

    रब्ब कहीं मुझको लगता है

    जीवित मेरे मन में

    घोंपे कोई सलाख़।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 421)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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