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फेगड़े का पेड़-एक

phegDe ka peD ek

पवन चौहान

पवन चौहान

फेगड़े का पेड़-एक

पवन चौहान

एक मुश्किल समय वह भी था

जब दो वक्त की रोटी के लिए

होती थी रोजाना जंग

परिवार बार-बार

लौट आता था

फेगड़े की छाँव में

पिछली शाम के बचे फुलके

या बटूरु के टुकड़ों संग

मिर्च वाला नमक लिए

फेगड़े से अपने लोटे भरने

अपनी भूख शाँत करने।

दादी बताती थी सब

और हम छोटे

मजे से सुनते रहते थे

उनके संघर्षों, अभावों, चिंताओं को

एक मज़ेदार कहानी की तरह

पूरी बात को बस

हल्क़ा-हल्क़ा समझते हुए।

इस बैंगनी फेगड़े ने सच में ही

बचाई है

कई भूखे इंसानों की जान

पशुओं का भरा है पेट

संतुष्टि की हद तक

और इसके पंजपत्तरे पत्तों ने संभाला है

गर्भवती गाय और भैंस का स्वास्थ्य भी।

माँ ने खिलाया है हमें

वह स्वादिष्ट साग भी

जो फेगड़े की लकड़ी की डोए से

घोटा गया है कई कई बार

उसके महीन पड़ने तक।

बरकरार है आज भी

फेगड़े के फूल का रहस्य

परंतु बच्चे नहीं खोजते अब इसे

जानते हैं सारा सच

वे नहीं चढ़ते अब

फेगड़े के पेड़ पर

नहीं तलाशते हैं बड़ा और

पका हुआ लटकता फेगड़ा

टहनी के अंतिम छोर पर।

फेगड़े का पेड़ भूल चुका है

अपनी टहनी पर कूदते-फाँदते

बच्चो की रौनक

उनकी सब अठखेलियाँ

जानता है वह

उनकी जीभ में क़ब्ज़ा है अब

फास्ट फूड के स्वाद का ही।

परंतु माँ जानती है

नन्हें फेगड़ों का स्वाद

उनकी कीमत

वह आज भी पकाती है उन्हें

बड़े चाव के साथ

ताकि चख़ पाए परिवार

नए मौसम के फल का स्वाद

और बचे रह सकें सब

दाद, खाज, खुजली से भी।

स्रोत :
  • रचनाकार : पवन चौहान
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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