पंडित जवाहरलालजी नेहरू के प्रति
panDit jawaharlalji nehru ke prati
सुमित्रानंदन पंत
Sumitranandan Pant
पंडित जवाहरलालजी नेहरू के प्रति
panDit jawaharlalji nehru ke prati
Sumitranandan Pant
सुमित्रानंदन पंत
और अधिकसुमित्रानंदन पंत
जय निनाद करते जन, हे जनगण के नायक,
इस विशालतम जन समुद्र के भाग्य विधायक!
ज्योति रत्न तुम भारत के, हृदयोज्वल, चेतन,
प्राणों की स्मित रंग श्री से बहुमुख शोभन!
फूलों के वाणों का रच नव कुसुमित तोरण,
अभिनंदन करता नव भारत का नव यौवन!
उर के चिर तारुण्य, पाँति में युवति युवक गण
खड़े प्रीति सौंदर्य द्वार बन अपलक लोचन!
जननि तुम्हारा मुख शिशुओं में करतीं चुंबन,
मानव होंगे वे किसके आदर्श कर ग्रहण?
उन्नत आज हिमाद्रि, उठाए नभ में मस्तक,
वह शाश्वत भारत प्रहरी, तुम गौरव रक्षक!
सिंधु तरंगित हर्ष स्फीत करता जय गर्जन,
निखिल धरा में करने को संदेश ज्यों वहन!
शत अभिवादन करता मन, भारत के नायक,
तन के मन के भूखों के नव भाग्य विधायक।
कोटि हस्त पद करो लोक गण का संचालन,
ज्योतित हों तम के मन, शोभित नग्न क्षुधित तन!
निर्मित करो पुनः भारत का वैभव जीवन,
आर्ष भूमि पर उठे सांस्कृतिक स्वर्गारोहण!
वसुधामयी भरत भूः मानवता-प्रेमी जन,
आत्मवान, ऋषियों के तप से अंतर्मुख मन;
खुलें तुम्हारे हाथों युग युग के जड़ बंधन,
ज्योति ज्वार सा जगे सुप्त भू का उपचेतन!
हो भारत स्वातंत्र्य विश्व हित स्वर्ण जागरण,
रक्त व्यथित भू पिए शांति सुख का संजीवन!
लौह अस्थि पंजर में यांत्रिक युग के भीषण
मनुष्यत्व का हृदय कर उठे फिर से स्पंदन!
ऊर्ध्व दंड तुम बनो, इंद्रधनु सी, सुर मोहन,
भारत की चेतना ध्वजा फहरे दिक् शोभन;
जीवन स्वप्न रंग स्मित, अंतर्रश्मि प्रज्वलित,
प्रीति शिखा सी, विश्व व्योम कर ज्योति तरंगित!
- पुस्तक : स्वतंत्रता पुकारती (पृष्ठ 257)
- संपादक : नंद किशोर नवल
- रचनाकार : सुमित्रानंदन पंत
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2006
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