Font by Mehr Nastaliq Web

चिकनी फिसलन भरी

chikni phislan bhari

सुरेश सलिल

अन्य

अन्य

सुरेश सलिल

चिकनी फिसलन भरी

सुरेश सलिल

और अधिकसुरेश सलिल

    यह चिकनी फिसलन भरी सदी

    बेहद ठंडेपन से दबा देती है घोड़ा

    और

    ताज़ा चमकते ख़ून से पेंट करती है

    धरती का कैनवास

    यह चिकनी फिसलन भरी सदी

    रैम्प पर उतरती है लगभग बेलिबास

    पेश करती ख़ुद को

    लॉलीपॉप की तरह

    यह चिकनी फिसलन भरी सदी

    बहेलियों और बूचड़ों को थमाती है राजदंड

    और पत्तियों का हरा पीले में तब्दील हो जाता है

    यह चिकनी फिसलन भरी सदी

    लुँगाड़ा धमाचौकड़ी करती हुई

    इतिहास और अदब के उन सफ़हों पर

    जिन्होंने आग को आदमी का किरदार दिया था

    इस चिकनी फिसलन भरी सदी ने

    सिर के बल खड़े होने को मजबूर कर दिया वर्तमान को

    और उठा रही है कुछ यूँ

    कि क़यामत के दिन तक

    उठाती रहेगी यूँ ही...

    स्रोत :
    • पुस्तक : कविता सदी (पृष्ठ 501)
    • संपादक : सुरेश सलिल
    • रचनाकार : सुरेश सलिल
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 2018

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY